मई (वैशाख-ज्येष्ठ) के प्रमुख कृषि कार्य (Agricultural work in May):
मई माह (वैशाख-ज्येष्ठ) में ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर होती है। इस समय रबी फसलों (गेहूं, चना, मसूर आदि) की कटाई और सुरक्षित भंडारण आवश्यक होता है, साथ ही भूसे का भी संरक्षण जरूरी है। खाली खेतों में गहरी जुताई और मृदा सौरीकरण से भूमि की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। खेती को लाभकारी बनाने के लिए समयबद्ध और वैज्ञानिक ढंग से कार्य करना जरूरी है।

फसल उत्पादन (Crop Production):
गेहूँ (Wheat), जौ (Barley), चना (Gram), मटर (Pea), मसूर (Lentil)
- फसल की कटाई व मड़ाई के बाद भंडारण में लापरवाही से फसल उत्पादन को भारी नुकसान हो सकता है, जिससे मनुष्य व पशुओं के उपयोग के लिए अनाज अनुपयोगी हो जाता है।
- दलहनी फसलों (चना, मसूर, मटर) में घुन/ब्रूचिड कीट से बचाव के लिए दानों को सुखाकर (10-12% नमी) और एल्युमिनियम फॉस्फाइड (1-3 गोली/टन) या एथिलीन डाइब्रोमाइड (30 मि.ली./टन) से ध्रुमीकरण (Fumigation) करें।
- चना, मसूर, मटर को सरसों/नीम तेल (6-7 मि.ली./किग्रा) एवं हल्दी (2 ग्राम/किग्रा) से उपचारित कर स्टील के बर्तनों या वैज्ञानिक पात्रों जैसे-पूसा बिन, पंतनगर कुठला, व हापुड़ बिन में भंडारण करें।
- वैज्ञानिक भंडारण से अनाज और बीजों में कीट-रोग कम होते हैं, भंडारण से पहले इन्हें अच्छी तरह सुखाएं।
- भंडारण में कीट प्रकोप से बचने के लिए तिलहनी-दलहनी फसलों में 6-8% और धान्य फसलों में 8-10% नमी बनाए रखें।
- भंडारगृह को साफ करें, दरारें बंद करें, मैलाथियान 50 ई.सी. से छिड़काव करें, और कीट नियंत्रण के लिए एल्युमिनियम फॉस्फाइड (1-3 गोली/टन), मिथाइल ब्रोमाइड (3-5 मि.ली./100 किग्रा), या नीम पाउडर का उपयोग करें।
- गोदाम में बीज भंडारण के लिए फर्श से एक फीट ऊंचा लकड़ी का प्लेटफार्म बनाएं, बोरों को दीवार से दूर रखें, नए जूट के बोरों का उपयोग करें और पुराने बोरों को गरम पानी से धोकर या 0.1 प्रतिशत मैलाथियान घोल में डुबोकर सुखाएं।
धान की नर्सरी (Paddy Nursery)
- भूमि का चयनः स्वस्थ धान नर्सरी के लिए दोमट मृदा, अच्छा जल-निकास, और पोषक तत्वों वाला क्षेत्र चुनें। बुआई से एक माह पहले नर्सरी तैयार करें, 3-4 बार जुताई, 15 दिन अंतराल पर सिंचाई, और पैराक्वाट/ग्लाइफोसेट (1 किग्रा/है.) से खरपतवार नष्ट करें।
- बीज चयनः धान के लिए आधारित और प्रमाणित बीज चुनें, जो पूर्ण जमाव, शुद्धता, और स्वस्थता की गारंटी दे।
- क्यारी प्रबंधनः धान की नर्सरी के लिए 8×1.5 मीटर की क्यारियां बनाएं, नवपौध को पक्षियों से बचाएं और 2-3 दिन तक अंकुरित बीजों को पुआल से ढकें।
- बीजदर एवं बीजोपचारः धान नर्सरी के लिए मध्यम प्रजातियों में 40 किग्रा, मोटे धान में 45 किग्रा, और बासमती में 20-25 किग्रा बीज उपयोग करें; बुवाई से पहले 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम/थीरम से बीजोपचार करें। जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी रोग प्रभावित क्षेत्रों में 25 कि.ग्रा. बीज को 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन के घोल में रातभर भिगोकर 24-36 घंटे जमाव के बाद छाया में सुखाकर नर्सरी में बोएं।
- पोषक तत्व प्रबंधनः अच्छी फसल के लिए संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग आवश्यक है। 1000 वर्गमीटर क्षेत्र में 10 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 10 कि.ग्रा. डाई-अमोनियम फॉस्फेट और 2.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट जुताई से पहले मिट्टी में मिलाएं। 10-12 दिनों बाद यदि पौधों का रंग पीला हो, तो 10 कि.ग्रा. यूरिया/1000 वर्ग मीटर की दर से दो बार मिट्टी में मिलाएं।
- खपतवार प्रबंधनः धान नर्सरी में बुआई के 1-2 दिन बाद पायराजोसल्फ्यूरॉन (250 ग्राम/है.) को 10-15 किग्रा रेत में मिलाकर छिड़कें, फिर 1-2 सेमी हल्का पानी भरें ताकि खरपतवार नष्ट हों।
ग्रीष्मकालीन मूंगफली (Summer Peanuts)
- मूंगफली की बुआई अप्रैल के अंतिम सप्ताह नहीं किया हो तो मई के पहले सप्ताह तक पूरी कर लें, मूंगफली-गेहूं फसलचक्र अपनाएं, लगातार एक ही भूमि पर न उगाएं, और उन्नत किस्में चुनें।
- खरपतवार प्रबंधनः मूंगफली में खरपतवार से 40-45% उपज हानि होती है, इसके नियंत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिन और दूसरी 35-40 दिन बाद करें। बुआई से पहले फ्लूक्लोरालिन या ट्रेफ्लॉन और खड़ी फसल में इमेजेथापायर का छिड़काव करें।
- जल प्रबंधनः ग्रीष्मकालीन मूंगफली में 4-5 सिंचाइयां करें, 35 दिन (फूल), 50-55 दिन (खूंटी), 70-75 दिन (दाना भरना) पर, खूंटी गढ़ने के लिए विशेष रूप से गहरी सिंचाई करे।
- पौध संरक्षणः ग्रीष्मकालीन मूंगफली में दीमक/फलीवेधक के लिए क्लोरपायरीफॉस 20% ई.सी. (2.5 ली./है.) और सूत्रकृमि के लिए कार्बोफ्यूरॉन 3जी (20 किग्रा/है.) या फोरेट 10जी (10 किग्रा/है.) का प्रयोग करें।
गन्ना (Sugarcane)
- मृदा में नमी बनाए रखने के लिए 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें
- अप्रैल-जुलाई में 400 लीटर पानी में रैनेक्सीपैर 20 एस.सी. (150 मि.ली.) का छिड़काव करें या जून अंत में 13 किग्रा कार्बोफ्यूरॉन प्रति एकड़ डालें।
ग्रीष्मकालीन सूरजमुखी (Summer Sunflower)
- जल प्रबंधनः जायद सूरजमुखी में तीन सिंचाइयां करें, पहली बुआई के 30-35 दिन बाद (1/3 नाइट्रोजन के साथ),द्वितीय 40-45 दिन बाद (फूल अवस्था), और बीज बनने पर अंतिम सिंचाई करे। फूल अवस्था में मधुमक्खियां परागण बढ़ाकर पैदावार और तेल उत्पादन में मदद करती हैं।
- खरपतवार प्रबंधनः सूरजमुखी में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई, 3 और 6 सप्ताह बाद दो निराई-गुड़ाई, पेंडीमेथिलीन 3% ईसी का छिड़काव, और पौधों पर मिट्टी चढ़ाएं।
- कीट नियंत्रणः जायद सूरजमुखी में पत्ती खाने वाले कीटों (लीफ हॉपर) के लिए मोनोक्रोटोफॉस 0.05% या डाइमेथोएट 0.03%, रस चूसक कीटों (एफिड्स, जैसिड) के लिए इमिडाक्लोरोपिड/एसिटामिप्रिड 125 ग्रा/है और चेंपा के लिए मैलाथियॉन 50 ई.सी. (200 मि.ली./200 ली. पानी) का छिड़काव करें।
- रोग प्रबंधनः सूरजमुखी में रतुआ, डाऊनी मिल्ड्यू, हेड रॉट जैसे रोगों के लिए बीज को बाविस्टिन/थीरम से उपचार करें, पत्ती झुलसा के लिए मैंकोजेब (3 ग्राम/लीटर) और पुष्पण पर 2% बोरेक्स + 1% जिंक सल्फेट का छिड़काव करें।
मूंग, उड़द एवं लोबिया(Moong, Urad and Cowpea)
- जल प्रबंधनः मार्च-अप्रैल में बोई गई मूंग, उड़द, लोबिया की फसल को बढ़वार अवस्था में 10-15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।
- खरपतवार प्रबंधनः बुआई के 15-20 दिनों बाद निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नष्ट करें, जिससे भूमि में वायु संचार बढ़े और नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद मिले।
- रोग एवं कीट: उड़द, मूंग, और लोबिया पर तना मक्खी, सफेद मक्खी, हरा फुदका, माहूं, पत्ती छेदक, थ्रिप्स, और फलीबेधक जैसे कीटों का प्रकोप फसल अवस्था, तापमान, नमी, और वर्षा पर निर्भर करता है। इन फसलों के रोगो एवं कीटों से बचाव के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें।
कपास (Cotton)
- कपास, एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, व्यावसायिक रूप से ‘श्वेत स्वर्ण’ कहा जाता है।
- जलवायुः कपास के लिए 16°C (जमाव), 21-27°C (बढ़वार), 27-32°C (फलन) तापमान, रात में ठंडक, 50 सेमी वर्षा, एवं गूलरों के फटने के समय चमकीली धूप आवश्यक है।
- मृदाः कपास के लिए 5.5-8.5 पीएच वाली बलुई एवं बलुई दोमट मृदा, जिसमें जलधारण एवं जल निकास की अच्छी क्षमता हो, उपयुक्त है।
- फसल पद्धतिः फसल चक्र अपनाएं और प्रमाणित एवं रोग प्रतिरोधी बीजों का उपयोग करें। बीजोपचार अवश्य करें।
- बुआईः कपास की बुआई अप्रैल-मई में पंक्तियों को अमेरिकी/देसी 60×30 सेमी, संकर 90×60 सेमी की दूरी में सीड ड्रिल या हल से करें, जिसमें अमेरिकन, संकर और देसी प्रजातियों के लिए क्रमशः 15-20, 2-2.5 और 15-16 कि.ग्रा./हैक्टर बीज की आवश्यकता होती है।
- जल प्रबंधनः कपास की बुआई सिंचित क्षेत्रों में 15-25 मई और बारानी क्षेत्रों में मानसून शुरू होने पर करें। कपास में 3-4 सिंचाइयां आवश्यक हैं, अंतिम सिंचाई एक तिहाई टिंडे खुलने पर करें।
- खरपतवार प्रबंधनः कपास में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 30-35 दिन पूर्व सूखी गुड़ाई करें और फूल-गूलर बनने पर कल्टीवेटर की बजाय खुर्पी से खरपतवार निकालें।
चारा वाली फसलें (Fodder Crops)
- बरसीम, जई, लोबिया की बीज वाली फसलों की कटाई करें और 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें, मई में हरे चारे के लिए बाजरा, ज्वार, मक्का की बुआई कर सकते हैं।
- किस्मों का चयनः मई में चारे के लिए सिंचित क्षेत्रों में बाजरा (पीसीबी 141), मकचरी (टीएल-1), नेपियर-बाजरा संकर (पीवीएन-233, संकर-21), ज्वार (जे.एम. 20, एच.सी. 136, आदि), मक्का (जे. 1006, प्रभात), गिनी घास (पी.जी.जी. 518), ग्वार (एफ.एस. 277), लोबिया (लोबिया-88) बोएं। चारा फसलो की मिश्रित बुवाई से पौष्टिक चारा, अधिक पैदावार, और ज्यादा कटाई मिलती है।
- पोषक तत्व प्रबंधनः मिश्रित चारे के लिए बीज उपचारित कर, 2-3 जुताई के बाद 10 टन गोबर खाद और 1 बोरा यूरिया डालकर बोएं।
- कटाई: चारे की अच्छी बढ़वार पर आवश्यकतानुसार कटाई करें और प्रत्येक कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया छिड़कें।
हरी खाद वाली फसलें (Green Manure Crops)
- हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, मूंग, उड़द आदि दलहनी फसलें प्रमुख हैं, जिनका चयन भूमि, जलवायु व उद्देश्य के अनुसार किया जाना चाहिए।
- हरी खाद के लिए कोमल तना, शाखाएं व पत्तियों वाली, शीघ्र वृद्धि करने वाली, सूखा व जलमग्नता सहनशील फसलें उपयुक्त होती हैं।
- हरी खाद फसलों जैसे ढैंचा व सनई (बुआई 60 किग्रा/है.) से नाइट्रोजन मिलने के साथ-साथ इन्हें अन्य उपयोग में भी लाया जा सकता है।
- हरी खाद देने के लिए दलहनी व गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि काल में जुताई कर मिट्टी में दबाया जाता है, जिससे मृदा की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ती है। दलहनी फसलें नाइट्रोजन को स्थिर कर भूमि की उर्वरक शक्ति बढ़ाती हैं और चारा व पोषक तत्व भी उपलब्ध कराती हैं।
- हरी खाद के लिए बुआई से पहले बीज को 12 घंटे पानी में भिगोने से अंकुरण तेजी से होता है। 35-40 दिनों में फसल पलटने योग्य हो जाती है, इसलिए धान की रोपाई से पहले ढैंचा, सनई और लोबिया की बुआई करना लाभदायक रहता है।
- हरी खाद वाली फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि एवं कृषि तकनीकों पर निर्भर करती है।
विभिन्न फसलों की उत्पादन क्षमता निम्नलिखित है:
फसल का नाम | प्राप्त नाइट्रोजन (कि.ग्रा. प्रति हैक्टर) | नाइट्रोजन का प्रतिशत | हरे पदार्थ की मात्रा (टन प्रति हैक्टर) |
---|---|---|---|
लोबिया | 74-88 | 0.49 | 15-18 |
सनई | 86-129 | 0.43 | 20-30 |
ढैंचा | 84-105 | 0.42 | 20-25 |
मूंग | 38-48 | 0.48 | 8-10 |
उड़द | 41-49 | 0.41 | 10-12 |
ग्वार | 68-85 | 0.34 | 20-25 |
कुल्थी | 26-33 | 0.33 | 8-10 |
मृदा परीक्षण (Soil Testing)
- मृदा परीक्षण का यह उपयुक्त समय है। इसके द्वारा मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा, पीएच मान और सूक्ष्म जीवों की संख्या की जानकारी मिलती है। इससे हम मृदा की स्थिति सुधारने के लिए उचित कदम उठा सकते हैं और फसलचक्र का सही चयन कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
- मृदा नमूना लेने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- एक हैक्टर खेत से 15 स्थानों से 15 सें.मी. गहराई तक मृदा नमूने खुरपी से इकट्ठा करें।
- मृदा नमूना खाद वाले स्थान, छायादार स्थान या सिंचाई नाली के पास से न लें।
- खेत से इकठ्ठे किए गए नमूनों को अच्छे से मिला कर 500 ग्राम मृदा कपड़े की थैली में भरकर, पूरा विवरण लिखकर प्रयोगशाला में भेजें।
- नमूनों की जांच के बाद मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त करें, ताकि अगली खरीफ की फसल में मृदा स्वास्थ्य के आधार पर उचित खाद और उर्वरकों का प्रयोग किया जा सके।
मृदा सौरीकरण एवं समतलीकरण (Soil Solarization and Leveling)
- गर्मी की जुताई से खरीफ की बुआई के लिए खेत की तैयारी आसान और तेज हो जाती है।
- यदि जुताई संभव नहीं हो तो मृदा सौरीकरण किया जा सकता है, इसके लिए भूमि पर पॉलीथीन चादर बिछाएं, जिससे कीटाणु, बीज और कीट के अंडे नष्ट हो जाते हैं।
- खेत समतल न होने पर लेवलर का उपयोग कर समतलीकरण करें, ताकि सिंचाई समान रूप से हो सके और पानी की बचत भी हो।
ग्रीष्मकालीन जुताई (Summer Plowing)
- मिट्टी पलटने वाले हल से गर्मी की जुताई करने से मिट्टी की ऊपरी परत नीचे चली जाती है और फसल अवशेष व खरपतवार दब जाते हैं, जो सड़कर कार्बनिक खाद में बदलते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता, संरचना और भौतिक दशा में सुधार होता है।
- गर्मी की जुताई के लाभ:
- मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।
- गर्मी की जुताई से मृदा में वायु, सूर्य के प्रकाश और जलवायु के संपर्क में आने से खनिज तत्व पौधों के लिए अधिक उपयोगी रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
- गर्मी की जुताई से हानिकारक कीट व रोगकारक सतह पर आकर तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं, जिससे कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है।
- गर्मी की जुताई से मिट्टी में जीवाणु तेज़ी से बढ़ते हैं, जो दलहनी फसलों के लिए बहुत फायदेमंद है।
- गर्मी की जुताई से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है, क्योंकि उनके बीज तेज धूप और गर्मी से नष्ट हो जाते हैं।
- बारानी (वर्षा आधारित) क्षेत्रों में वर्षा के पानी का संचयन बढ़ाने के लिए गर्मी की गहरी जुताई लाभदायक होती है, जिससे 31.3% वर्षा जल का अवशोषण संभव होता है।
- गर्मी की जुताई से मिट्टी के कटाव में 66.5% तक कमी आती है।
- गर्मी की जुताई से गोबर की खाद और अन्य कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में अच्छे से मिल जाते हैं, जिससे पोषक तत्व जल्दी फसलों को मिलते हैं।
सब्जियों की खेती (Vegetable Farming):
कद्दूवर्गीय फसलें (Cucurbitaceous Crops)
- कद्दूवर्गीय फसलों (लौकी, कद्दू, तोरई, काशीफल, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा) की बुआई मार्च-अप्रैल में होती है। इस समय हरी फसलें कम होने से कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, इसलिए इनके नियंत्रण पर ध्यान देना ज़रूरी है। पौध अवस्था में फसल स्वस्थ रहने पर आगे अच्छी उपज की संभावना रहती है।
- सिंचाई: गर्मी में, खासकर मई में, सामान्य तौर पर 5-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।
- कीट प्रबंधनः फल मक्खी और लाल कद्दू कीट प्रमुख कीट हैं। इनके नियंत्रण के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फल मक्खी के नियंत्रण के लिए भी कार्बोरिल 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। ध्यान दें, कीटनाशी का छिड़काव फल टूटने के बाद ही करें।
- रोग प्रबंधनः मृदु रोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता और जड़ विगलन फफूंदी जनित रोग हैं। रोकथाम के लिए रोगग्रस्त अवशेष नष्ट करें। मृदु रोमिल आसिता के लिए मैंकोजेब 2.5 मिली/लीटर पानी में छिड़कें। बुकानी रोग के लिए कैराथैन 1 लीटर या 3 किग्रा घुलनशील गंधक/हेक्टेयर को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
भिंडी (Ladyfinger)
- सिंचाई: भिंडी की बुआई फरवरी-मार्च में होती है। पुष्पण और फली विकास के दौरान 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
- रोग प्रबंधन: भिंडी में मोजैक और पर्ण कुंचन रोग सफेद मक्खी से फैलते हैं। मोजैक में पीली चित्ती और पीली नसें दिखती हैं। लीफ कर्ल में पत्तियां गड्ढेदार हो जाती हैं। नियंत्रण के लिए एसिटामाइप्रिड 3 ग्राम/10 लीटर पानी या कॉन्फिडोर (0.3-0.5 मिली/लीटर पानी) बुआई के 20 दिन बाद और फिर 15 दिन के अंतर पर डालें। दूसरा छिड़काव स्पाइरोमसीफेन 2 ग्राम/लीटर पानी में करें।
- कीट नियंत्रण: फली और तना छेदक कीट फलियों और तनों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे उपज घटती है। इसके नियंत्रण के लिए एमामेक्टिन बेन्जोएट (2 ग्राम/10 लीटर) या स्पिनोसैड (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा 50,000 कार्ड प्रति हेक्टेयर छोड़ने से भी कीट कम होते हैं। पत्ती काटने वाले कीट के लिए साइपरमेथ्रिन (0.5 मिली/लीटर) का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।
टमाटर, बैंगन एवं मिर्च (Tomatoes, Brinjals and Chillies)
- जलवायु एवं मृदाः मूली की खेती के लिए ग्रीष्म ऋतु और 21-30 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा होता है। अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी तथा 6-7 पी-एच मान वाली भूमि उपयुक्त है।
- बुआईः बैंगन की बीज बुआई मई-जून में और रोपाई जून से मध्य जुलाई तक की जाती है। बुआई के बाद नर्सरी को पुआल/घास से ढकने से अंकुरण बढ़ता है। नर्सरी में तुरंत फव्वारे से सिंचाई करें। मई के दूसरे सप्ताह में मिर्च की नर्सरी लगाएं, एक एकड़ के लिए 400 ग्राम बीज पर्याप्त है। उन्नत किस्में पूसा सदाबहार एवं पूसा ज्वाला 80-100 क्विंटल हरी मिर्च देती हैं। रोगों से बचाव के लिए 400 ग्राम बीज को 1 ग्राम कैप्टॉन या थीरम से उपचारित करें।
- पोषक तत्व प्रबंधनः खेत तैयार करते समय 25 टन/हेक्टेयर सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिलाएं। रोपाई से पहले 150 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस और 60 किग्रा पोटाश डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय और बाकी आधी फूल आने पर प्रयोग करें।
- खरपतवार नियंत्रणः पौध रोपाई से पहले पेण्डीमेथिलीन (स्टॉम्प) 3 लीटर प्रति हेक्टेयर डालें (जमीन में नमी होनी चाहिए)। निराई-गुड़ाई से भी खरपतवार नियंत्रित कर सकते हैं। रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को कॉन्फिडोर कीटनाशी के 1 लीटर पानी के घोल से उपचारित करें। मार्च में रोपे गए टमाटर, बैंगन और मिर्च में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। टमाटर और मिर्च में रोपाई के 45-50 दिन बाद 35 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें। टमाटर के फलों को सफेद होने से बचाने के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन करें, 3-4 पंक्तियों के बीच सनई या कैंचा लगाएं, और अधिक पत्तियों वाली किस्मों का चुनाव करें।
- कीट प्रबंधनः तम्बाकू की सूंडी के लिए फेरोमोन ट्रैप लगाकर कीट नष्ट करें। सफेद मक्खी से बचाव के लिए कॉन्फिडोर 0.3 मिली/लीटर पानी में घोलकर 30 दिन के अंतर पर छिड़कें। टमाटर और बैंगन में फल छेदक सुंडी से बचाव के लिए, फलों की तुड़ाई के बाद डेल्टामेथ्रिन 2.8 EC 1.0 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अच्छी पैदावार के लिए टमाटर में निराई-गुड़ाई करते रहें और पौधों के पास मिट्टी चढ़ाएं। बैंगन में तना और फल छेदक गंभीर कीट है। नियंत्रण के लिए 10 मीटर पर 100 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाकर वयस्क नर कीटों को पकड़कर नष्ट करें। पेड़ी फसल न लें, क्योंकि इसमें फल छेदक का प्रकोप अधिक होता है। प्रभावित प्ररोहों और फलों को निकालकर मिट्टी में दबा दें। फूल आने से पहले नीम बीज अर्क (5%), बी.टी. 1 ग्राम/लीटर, स्पिनोसेड 1 मिली/4 लीटर, कार्बरिल 2 ग्राम/लीटर या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली/लीटर का प्रयोग करें।
- पौध संरक्षणः बढ़ने वाली किस्मों को सहारा देने के लिए स्टैकिंग करें। टमाटर के फल फटने से बचाने के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन करें और 0.3-0.4 प्रतिशत बोरॉन का छिड़काव करें।
अदरक (Ginger)
- बुआईः अदरक की बुआई के लिए 16-18 क्विंटल प्रकंद/है. चाहिए, 30×20 सेमी दूरी और 4 सेमी गहराई पर बोएं, और बुआई से पहले 20-25 ग्राम टुकड़ों को 0.3% कॉपर ऑक्सीक्लोराइड घोल से 10% तक उपचारित करें।
- किस्मों का चयनः अदरक के लिए सुप्रभा, सुरभि, सुरूचि एवं हिमगिरी उन्नत प्रजातियां हैं, खेत की तैयारी में 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल गोबर खाद के साथ 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पोटाश बुआई से पहले अंतिम जुताई में मिलाएं।
हल्दी (Turmeric)
- बुआईः हल्दी की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल प्रकंदों की आवश्यकता होती है। बुआई 40×20 सेमी की दूरी और 4 सेमी गहराई पर करें। बुआई से पहले 20-25 ग्राम के हल्दी टुकड़ों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 0.3% घोल से उपचारित करें।
- किस्मों का चयनः हल्दी की उपयुक्त किस्में: कृष्णा, राजेन्द्र, अमलापुरम, मधुकर।
- पोषक तत्व प्रबंधनः हल्दी के लिए खेत तैयारी में प्रति हेक्टेयर 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर खाद + 120 किग्रा नाइट्रोजन + 80 किग्रा फॉस्फोरस + 80 किग्रा प्रति हैक्टर पोटाश अंतिम जुताई में मिलाएं।
अदरक, हल्दी और सूरन की बुआई के बाद खेत को सूखी पुआल, घास-फूस या पत्तियों से ढक दें ताकि नमी बनी रहे और अंकुरण अच्छा हो। इस महीने सूरन की बुआई पूरी कर लें।
फूलगोभी (Cauliflower)
- किस्मों का चयनः फूलगोभी की अगेती उन्नत किस्में: पूसा कार्तिक संकर, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी, पूसा अश्वनी, पूसा मेघना आदि प्रमुख हैं।
- बीज दर एवं बुआईः अच्छी जमाव क्षमता वाले बीज की दर 500-600 ग्राम/हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए 350-400 ग्राम/हेक्टेयर पर्याप्त है। फूलगोभी की अगेती बुआई के लिए मध्य मई से जून में बीज बोएं और 5-6 सप्ताह की पौध की रोपाई करें।
- बीज उपचार के लिए 2 ग्राम बाविस्टीन/कैप्टॉन या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज करें; नर्सरी क्यारी छायादार, नम स्थान पर 3.0×0.45×0.15 मीटर आकार में बनाएं, 100 वर्ग मीटर क्यारी 1 हैक्टर के लिए पर्याप्त है।
- पोषक तत्व प्रबंधनः खेत की तैयारी के समय 25-30 टन/हैक्टर गोबर की खाद मिलाएं। रोपाई से पहले 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 100 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश में से आधी नाइट्रोजन और पूरी फॉस्फोरस-पोटाश मिलाएं। शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर पहला हिस्सा रोपाई के एक महीने बाद और दूसरा हिस्सा फूल बनने के समय मिट्टी चढ़ाते समय डालें।
- खरपतवार नियंत्रण एवं जल प्रबंधनः खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई से पहले 2.5 ली./है. बेसालीन या 3.3 ली./है. स्टॉम्प छिड़ककर हल्की सिंचाई करें; अगेती फसल में रोपाई के बाद साप्ताहिक, मध्यम/पछेती फसल में 10-15 दिन अंतराल पर सिंचाई करें।
- रोग प्रबंधनः फूलगोभी की नर्सरी में आर्द्रगलन रोग से बचाव के लिए बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2 ग्राम बाविस्टीन/कैप्टॉन प्रति किग्रा से उपचारित करें, या 25 ग्राम ट्राइकोडर्मा/10 किग्रा गोबर खाद 100 वर्ग मीटर नर्सरी में मिलाएं, या 2 ग्राम/लीटर बाविस्टीन/कैप्टॉन का छिड़काव करें।
फूलगोभी, गांठगोभी, पत्तागोभी, गाजर, मूली, पालक, मेथी और शलजम की बीज वाली फसलों की कटाई करें और बीजों को 8% नमी तक सुखाएं।
मूली: गर्मी के लिए मूली की उपयुक्त किस्म पूसा चेतकी है, जो 45-50 दिनों में तैयार होती है। इसकी बुआई अप्रैल से अगस्त तक की जा सकती है।
फलों की खेती (Fruit Farming):
- नए बाग लगाने के लिए गड्ढे खोद दें ताकि धूप से कीट और रोग नियंत्रित हो सकें। महीने के अंत में गड्ढों को आधी ऊपरी मिट्टी और आधी कम्पोस्ट में क्लोरोपायरीफॉस मिलाकर पूरी तरह भर दें।
- गर्मी में बागवानी फसलों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई और आवश्यकतानुसार कटाई-छंटाई करें।
- आम, अमरूद, पपीता, लीची, अंगूर, आंवला, बेर, नाशपाती, आलूबुखारा और नींबू में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
- आम में फुदका कीट नियंत्रण के लिए, जब फल मटर के आकार के हों, तो मोनोक्रोटोफॉस 1.25 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। दासी मक्खी के नियंत्रण के लिए कार्बोरिल 0.2%, शर्करा 0.1% और मैलाथियॉन 0.1% मिलाकर ट्रैप बनाकर लटकाएं। खर्रा या पाऊडरी रोग के लिए 0.2% घुलनशील गंधक का प्रयोग करें। कोइलिया फल विकार के लिए फल लगने पर सिंचाई के साथ बोरेक्स 1% का छिड़काव करें। आम के फलों को ऊतक क्षय रोग से बचाने के लिए 8 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फलों के गिरने से रोकने के लिए वृद्धि हार्मोन NAA 20 पीपीएम का छिड़काव करें।
- अमरूद की सघन बागवानी में 1×2 मीटर दूरी पर पौधे लगाएं, फूल वाली शाखाओं का 3/4 भाग काटें, 10-15 दिन अंतराल पर सिंचाई तथा 10% यूरिया का छिड़काव पुष्पण पर करें। अप्रैल-मई में बहार नियंत्रण के लिए यूरिया छिड़कें, मई में छंटाई करें, और तेज धूप से बचाने के लिए तनों पर कॉपर-चूना लेप लगाएं।
- कागजी नीबू में फल फटने से बचाव के लिए पोटेशियम सल्फेट का 4% घोल पानी में मिलाकर छिड़कें।
- लीची के फल मई-जून में पक जाते हैं, जिनका रंग गहरा गुलाबी या लाल होता है। इनकी तुड़ाई मई से जुलाई तक चलती है। फल फटना एक बड़ी समस्या है जो नमी की कमी और गर्म हवाओं से होती है। इससे बचाव के लिए फल लगने से पकने तक हल्की सिंचाई करते रहें। फल विगलन रोग से बचाव के लिए फल पकने से 20-25 दिन पहले बाविस्टीन 10 ग्राम को 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- रोपे गए केले के लिए 1.5 मीटर दूरी पर 50×50 सेमी गड्ढों में 10 किग्रा गोबर खाद, 10 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन, 50 ग्राम फॉस्फोरस, और मिट्टी मिलाकर भरें, 25 ग्राम नाइट्रोजन पौधे से 50 सेमी दूर डालकर मिट्टी में मिलाएं और सिंचाई करें।
औषधीय फसलें (Medicinal Crops)
- मेंथा की फसल में 40-50 किग्रा नाइट्रोजन की तीसरी और अंतिम टॉप ड्रेसिंग ज़रूर करें। पहली कटाई 100-120 दिनों पर (कलियाँ बनने पर) और दूसरी कटाई पहली के 70-80 दिन बाद करें। पौधों को मिट्टी की सतह से 4-5 सेमी ऊपर से काटें। कटाई के बाद पौधों को 2-3 घंटे धूप में छोड़ दें। फिर छाया में हल्का सुखाकर तुरंत आसवन विधि से तेल निकाल लें।
- सर्पगंधा की नर्सरी मई में डाल सकते हैं। प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए 6-7 किग्रा बीज की ज़रूरत होती है।
- तुलसी और सफेद मूसली की बुआई इसी महीने में कर सकते हैं, जो फायदेमंद औषधीय फसलें हैं। मई में रोपाई दोपहर के बाद करें और तुरंत सिंचाई करें। हल्की बारिश वाले दिन रोपाई के लिए अच्छे होते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 750 ग्राम से 1 किग्रा तुलसी का बीज काफी है। रोपाई पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 60×30 सेमी रखें।
फूल और सुगंधित पौधे (Flowers and Fragrant Plants):
- चाइना एस्टर, गेंदा, और कॉर्नेशन में शीर्ष नोचन शुरू करें, और लिलियम में फूलों की तुड़ाई प्रारंभ करें।
- फूल वाले पौधों में कीट या रोग लगने पर 0.2% फफूंदीनाशक (कैप्टॉन या बाविस्टिन) और 0.2% कीटनाशक (रोगोर, मेटासिस्टॉक्स आदि) का घोल बनाकर 20-25 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।
- गुलाब के पौधे की आवश्यकतानुसार सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उनकी वृद्धि अच्छी होती है।
- रजनीगंधा में एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई और दो सप्ताह के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें। कन्द लगाने का समय फरवरी के अन्तिम सप्ताह से जुलाई तक है।
- ग्लैडियोलस की खेती में लगभग 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। कंद निकालते समय 2-3 सप्ताह तक पानी रोक दें, इससे पौधों का विकास अच्छा होता है।
- डेफोडिल और नरगिस में जब कंद से कल्ले निकलने लगें तो सिंचाई कर दें। अच्छी उपज के लिए खेत में नमी बनाए रखें। यदि रोग या कीट का प्रकोप हो तो 0.2% बाविस्टिन और 0.2% रोगोर या मेटासिस्टॉक्स आदि का घोल बनाकर 20-25 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहें।
पशुपालन/दुग्ध विकास (Animal Husbandry/Dairy Development):
- गर्मी और लू से पशुओं को बचाएं।
- उन्हें पर्याप्त हरा चारा और स्वच्छ पानी दें। सुबह और शाम उन्हें नहलाएं।
- सांप काटने पर काटे हुए स्थान से 3 इंच ऊपर-नीचे बांधें, ब्लेड से चीरा लगाकर थोड़ा खून निकालें, और घाव में पोटाश पाउडर डालें।
- आँख आना होने पर बोरिक ऐसिड को गुनगुने पानी में मिलाकर आँखें धोनी चाहिए। इसे अच्छी तरह से साफ करने के बाद सोफ्रामाईसिन लोशन की 5-5 बूंदें दोनों आँखों में डालें, या फिर लोकुला आई ड्रॉप का इस्तेमाल करें।
मुर्गी पालन (Poultry Farming):
- मुर्गीखाने के पास छायादार पेड़ लगाएं।
- एस्बेस्टस/टिन की छत पर पेंट करें ताकि मुर्गीखाना ठंडा रहे।
- पर्दे पर पानी छिड़ककर ठंडक बनाए रखें।
- मुर्गियों के चारे में प्रोटीन 18% से बढ़ाकर 20% करें, मूंगफली की खली और मछली का चूरा बढ़ाएं।