मार्च (फाल्गुन-चैत्र) का महीना कृषि कार्यों के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस समय रबी फसलें पककर तैयार हो जाती हैं, जबकि खरीफ और ग्रीष्मकालीन फसलों की तैयारी शुरू हो जाती है। इसके अलावा, बागवानी, पशुपालन और जल प्रबंधन जैसे कार्य भी आवश्यक हो जाते हैं।

मार्च के प्रमुख कृषि कार्य (Agricultural work in March)

March month Farming

फसल उत्पादन (Crop Production):

गेहूँ (Wheat)

  • गेहूं की फसल इस समय फूल निकलने से लेकर दाना भरने अथवा दाना सख्त होने की अवस्था में होते है। इस अवस्था में मृदा में नमी की कमी होने से उपज में भारी कमी आ जाती है। इसलिए अपनी फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई अवश्य करें। तेज हवा चलने की स्थिति में सिंचाई न करें, अन्यथा फसल गिरने का डर रहता है।
  • गेहूं की पांचवी सिंचाई जब गेहूं के दाने दुधिया अवस्था में करनी चाहिए। यह बोआई के 100-105 दिनों बाद आ जाती है और छठी सिंचाई व अंतिम सिंचाई दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए। यह बोआई के 115-120 दिनों मे करनी चाहिए।
  • गेहूं की फसल को कीट और रोगों से बचाने के लिए कीटनाशक या जैविक नियंत्रण के उपाय अपनाएं।

जौ (barley)

  • जौ इस महीने में पक जाती है। जौ की फसल पकते ही काट लें नहीं तो फसल झड़ जाती हैं तथा गिर भी जाती हैं, अच्छी पैदावार के लिए दानों को बिखरने से रोकें।
  • अगर आपने जौ की बोआई देर से की हो तो इसमें तीसरी व अन्तिम सिंचाई जौ के दानो के दुधियावस्था में आने पर, बोआई के 95-100 दिनो में करें।

चना (Gram), मटर (Pea), मसूर (Lentil)

  • चने की फसल में दाना बनने की अवस्था में फलीछेदक कीट का अत्याधिक प्रकोप होता है। फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए NSKE 5% या 3% नीम के तेल तथा आवश्यकतानुसार कीटनाशी का प्रयोग करें।
  • चना, मसूर और मटर की फसलों में 99 प्रतिशत फलियां व पत्ते पीले हो जाएं तथा पौधे सूखने लगे तो इन फसलों को सावधानीपूर्वक काटें तथा ढेर में रखें । पूरा सूखने पर गहाई करें इससे दाने बिखरते नहीं व फसल की पैदावार अधिक मात्रा मे होती हैं ।

गन्ना (Sugarcane)

  • गन्ने की बुआई 15-20 मार्च तक पूरी कर लें।
  • गन्ने की बुआई 75-90 सें.मी. दूरी पर बने कूड़ों में 10 सें.मी. की गहराई पर करें। इसकी बुआई के लिये 60-70 क्विंटल/हैक्टर बीज पर्याप्त होते हैं।
  • बसंतकालीन गन्ने के साथ 75 सें.मी. की दूरी पर बोई गयी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में उड़द की दो पंक्ति अथवा मूँग की दो-दो कतारें या भिण्डी की एक कतार आसानी से ली जा सकती है यह अत्यन्त लाभदायक रहता है।
  • गन्ने की फसल उगते समय दीमक व कीटों के आक्रमण से आंखों को नष्ट हो सकती है तथा पौधों की गोभ सूख जाती है। कीटों से फसल को बचाने के लिए बुआई के समय कूड़ों में बीज के ऊपर फव्वारे से कीटनाशक का छिड़काव करें।

सूरजमुखी (Sunflower)

  • सूरजमुखी की बोआई 15 मार्च तक पूरा कर लें।
  • सूरजमुखी की फसल में बोआई के 15-20 दिन बाद फालतू पौधों को निकाल कर पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंमी कर लें और तब सिंचाई करें।

मूंग एवं उड़द (Moong and Urad)

  • मूंग की बुआई 10 मार्च से 10 अप्रैल एवं उड़द की बुआई 15 फरवरी से 15 मार्च का समय उपयुक्त होता है।
  • सरसों, गेहूं, आलू की कटाई के उपरान्त 70 से 80 दिनों में पकने वाली मूंग एवं उड़द की प्रजातियों की बुआई की जा सकती है। अगर खेत समय पर तैयार न हो, तो वहां पर मूंग एवं उड़द की 60-65 दिनों में पकने वाली प्रजातियों की बुआई 15 अप्रैल के बाद कर सकते हैं।

चारा वाली फसलें (Fodder Crops)

  • रबी फसलों के कटने से खाली खेतों में चारा उपलब्ध कराने के लिए इस समय दूब घास (Durva Grass), बाजरा (Millet), लोबिया (Cowpea), संकर हाथी घास (Napier Grass) की बोआई के लिए अच्छा समय है।

सब्जियों की खेती (Vegetable Farming):

  • बैंगन तथा टमाटर में फल छेदक कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 25 प्रतिशत 1.0 ली. प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  • वर्षाकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बोआई कर दें।
  • ग्रीष्मकालीन सब्जियों-लोबिया, भिण्डी, चौलाई, लौकी, खीरा, खरबूजा, तरबूज, चिकनी तोरी, करेला, आरी तोरी, कुम्हड़ा, टिण्डा, ककड़ी व चप्पन कद्दू की बोआई यदि न हुई हो तो पूरी कर लें।
  • ग्रीष्मकालीन सब्जियों, जिनकी बोआई फरवरी माह में कर दी गई थी, की 7 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें तथा आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें। पत्ती खाने वाले कीटों से बचाने के लिए डाईक्लोरोवास एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • लहसुन की फसल में निराई-गुड़ाई व सिंचाई करें।

फलों की खेती (Fruit Farming):

  • आम में भुनगा कीट से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घुलनशील गन्धक 80 प्रतिशत 2.0 ग्राम अथवा डाइनोकैप 48 प्रतिशत ई.सी. 1.0 मि.ली. की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें। काला सड़न या आन्तरिक सड़न के नियंत्रण के लिए बोरैक्स 10 ग्राम 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। उपरोक्त तीनों रोगों के विरूद्ध उपयुक्त रसायनों का एक साथ मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है।
  • केला में 25 ग्राम नाइट्रोजन की मात्रा को पौधे से 40-50 सें.मी. दूर गोलाई में डालकर चारों तरफ निराई-गुड़ाई करके मृदा में मिला दें तथा सिंचाई करें।
  • अमरूद के नए पौधों की रोपाई की जा सकती है। अमरूद, आंवला, आम, कटहल, पपीता व लीची के नवरोपित पौधे की सिंचाई करें।
  • पपीता, आम और अमरूद के बगीचों की ठीक से सफाई कर, उनमें जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें व खाद डालें।

फूल और सुगंधित पौधे (Flowers and Fragrant Plants):

  • यदि आप गलैडियोलस से कन्द लेना चाहें तो पौधे को भूमि से 15-20 सेंमी ऊपर से काटकर छोड़ दें और सिंचाई करें। पत्तियाँ जब पीली पड़ने लगें तो सिंचाई बन्द कर दें।
  • गर्मी वाले मौसमी फूलों जैसे पोर्चुलाका, जीनिया, सनफ्लावर, कोचिया, नारंगी कासमास, ग्रोम्फ्रीना, सेलोसिया व बालसम के बीजों को एक मीटर चौड़ी तथा आवश्यकतानुसार लम्बाई की क्यारियाँ बनाकर बीज की बोआई कर दें।
  • गुलाब की फसल में आवश्यकतानुसार छंटाई, निराई-गुड़ाई व सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक है। गुलाब के खेतों में गोबर की सड़ी हुई खाद डाले।
  • मेंथा में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें तथा प्रति हेक्टेयर 40-50 किग्रा नाइट्रोजन की पहली टाप ड्रेसिंग कर दें।

पशुपालन/दुग्ध विकास (Animal Husbandry/Dairy Development):

  • पशुशाला की सफाई व पुताई करायें।
  • गर्भित गाय के भोजन में दाना की मात्रा बढ़ा दें।
  • पशुओं के पेट में कीड़ों की रोकथाम के लिए कृमिनाशक दवा देने का सर्वोत्तम समय है।

मुर्गी पालन (Poultry Farming):

  • कम अण्डे देने वाली मुर्गियों की छटनी (कलिंग) करें।
  • मुर्गियों के पेट में पड़े कीड़ों की रोकथाम (Deworming) के लिए दवा दें।
  • परजीवियों जैसे जुएं की रोकथाम के लिए मैलाथियान कीटनाशक तथा राख का आधा-आधा भाग मिलाकर मुर्गियों के पंख पर रगड़े।
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