बिहार मे मक्का की खेती (Maize/Corn Farming in Bihar):
बिहार भारत के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्यों में से एक है। बिहार देश का पांचवां सबसे बड़ा मक्का उत्पादक राज्य है और देश के कुल मक्का उत्पादन में इसका योगदान लगभग 11% है।
यहाँ मक्का/मकई को खरीफ, रबी और ज़ायद तीनों मौसमों में उगाया जाता है। राज्य की जलवायु और मिट्टी मक्का की खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है।
बिहार में वैशाली, बेगूसराय, समस्तीपुर, कटिहार, पूर्णिया, पश्चिम चंपारण, और पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर मक्का की खेती होती है।
मक्का केवल एक खाद्यान्न (Food grains) फसल नहीं है, बल्कि इसका उपयोग खाद्य, पशु आहार, औद्योगिक उत्पाद, जैव ईंधन और औषधियों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
बिहार में मक्का की खेती के लिए उपयुक्त मौसम (Suitable season for maize farming in Bihar):
मौसम | बुवाई का समय | कटाई का समय |
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खरीफ मक्का | जून-जुलाई | अक्टूबर-नवंबर |
रबी मक्का | अक्टूबर-नवंबर | मार्च-अप्रैल |
ज़ायद मक्का | फरवरी-मार्च | मई-जून |
👉रबी मक्का बिहार में अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि इस दौरान रोग और कीटों का प्रभाव कम होता है और उपज अधिक मिलती है।
बिहार में मक्का की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of Maize in Bihar):
संकर (Hybrid)
किस्म का नाम | उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | मुख्य विशेषता |
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शक्तिमान-1 और 2 | 90-100 | सभी मौसम मे उपयुक्त |
शक्तिमान-3 और 4 | 110-120 | रबी मौसम के लिए उपयुक्त |
राजेन्द्र मक्का-1 | 85-95 | बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित |
पी-3396 | 100-110 | मोटे दाने, सूखा सहनशील |
विवेक कंचन | 80-85 | रबी और खरीफ दोनों के लिए उपयुक्त |
डीकेसी 9081 | 90-100 | अधिक उत्पादन, रोग प्रतिरोधी |
एच.एम.-4 | 80-90 | जल्दी पकने वाली, अच्छी गुणवत्ता |
सामान्य किस्में (Open Pollinated)
किस्म का नाम | उपज (क्विंटल/हेक्टेयर) | मुख्य विशेषता |
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सुवर्णा | 60-70 | मध्यम अवधि में तैयार |
नवज्योति | 65-75 | सूखा और कीट प्रतिरोधी |
गंगा-5 | 65-70 | खरीफ के लिए उपयुक्त |
गंगा सफेद-2 | 55-65 | बेहतर भंडारण क्षमता |
मक्का की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Maize Farming):
बिहार की जलवायु मक्का की खेती के लिए अनुकूल है, खासकर खरीफ और रबी सीजन मे मक्का के लिए 18°C से 32°C तापमान उपयुक्त होता है। 40°C से अधिक तापमान होने पर मक्का की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। गर्मी के दिनों में हल्की सिंचाई या जैविक मल्चिंग (Mulching) करें।
मक्का के लिए आवश्यक औसत वर्षा: 50-100 cm हैं । खरीफ मक्का के लिए मानसून की वर्षा (जून-सितंबर) लाभकारी होती है। रबी और जायद मक्का के लिए सिंचाई आवश्यक होती है, क्योंकि इस समय वर्षा नहीं होती। बहुत अधिक बारिश से जलभराव हो सकता है, जिससे जड़ों को नुकसान होता है। जलभराव से बचाने के लिए खेत में उचित जलनिकासी (Drainage) की व्यवस्था करें।
बिहार में फरवरी-मार्च के दौरान ओलावृष्टि से मक्का को नुकसान हो सकता है। ओलावृष्टि और तूफान (Hail and Storm) से मक्का को बचाने के लिए बीज की बुआई मेढ़ बनाकर करे और मजबूत तना वाली किस्मों (Strong Stalk Varieties) वाले बीज का चयन करें।
मक्का की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Maize Farming):
मक्का की खेती प्रायः सभी प्रकार के मिट्टी मे की जा सकता है। जैसे दोमट मिट्टी (Loamy Soil) सबसे उपयुक्त है , बलुई दोमट मिट्टी (Sandy Loam Soil) जल निकासी लिए अच्छी होनी चाहिए, जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) गंगा के मैदानी इलाकों में सबसे अच्छी उपज देती है, काली मिट्टी (Black Soil) – उच्च कार्बनिक पदार्थ युक्त होने पर लाभकारी होता है। लगभग 5.5 से 7.5 pH मान वाली मिट्टी मक्का की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। भारी चिकनी मिट्टी (Clay Soil) में मक्का की खेती नहीं करनी चाहिए इसमे जलभराव की समस्या होती है, जिससे जड़ों को नुकसान हो सकता है। जल जमाव इस फसल के लिये नुकसान देय है। इसलिए उचित जल निकास वाली एवं जीवांश युक्त मिट्टी में इसकी खेती सही ढंग से की जा सकती है।
खेत की तैयारी (Farm Preparation):
मक्का के लिए खेत की गहरी जुताई (Deep Ploughing) 2-3 बार करनी चाहिए और पाटा (Levelling) लगाकर मिट्टी को समतल करनी चाहिए ताकि मिट्टी नरम और भुरभुरी हो जाए। खरपतवार और फसल अवशेषों को हटा दें, ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे। गहरी जुताई से कीटों और खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैं, जिससे फसल को नुकसान नहीं होता।
बुवाई से पहले प्रति एकड़ 8-10 टन गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। खेत में हरी खाद (Green Manure) या नीम खली (Neem Cake) मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
बीज की बुवाई की विधि (Sowing Methods for Maize):
मेढ़ पर मक्का की बुआई (Sowing of Raised Bed Maize)
मक्का की खेती में मेढ़ (Ridge) पर बुआई करना एक आधुनिक और लाभकारी तकनीक है, जिससे जल निकासी में सुधार होता है और फसल की पैदावार बढ़ती है। मिट्टी में हवा संचार (Aeration) अच्छा रहता है, जिससे जड़ें अच्छी तरह बढ़ती हैं। पौधों को अधिक धूप मिलती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण बेहतर होता है। खरपतवार नियंत्रण आसान होता है।
मेढ़ बनाने की प्रक्रिया (How to Prepare Ridges for Maize Planting)
- मेढ़ों की ऊँचाई 15-20 सेमी (6-8 इंच) रखें।
- दो मेढ़ों के बीच की दूरी 60-75 सेमी (24-30 इंच) होनी चाहिए।
- मेढ़ बनाने के लिए रिजर (Ridger) या हल का प्रयोग करें।
- पानी सिर्फ क्यारियों (Furrows) में दें, जिससे जड़ों को सही नमी मिले।
👉 मेढ़ पर मक्का की बुवाई से उपज 15-25% तक अधिक होती है और जलभराव की समस्या से बचाव होता है।

ड्रिल विधि (Drill Method):
- सीड ड्रिल मशीन से बीजों को समान गहराई और दूरी पर बोया जाता है। जिससे पौधों को अच्छा पोषण मिलता है।
- बुआई में समय और श्रम की बचत होती है।
- पौधों के बीच समान दूरी रहने से पौधों को उचित पोषक तत्व मिलते हैं।
👉 बिहार में मक्का की खेती के लिए ड्रिल विधि सबसे अधिक अपनाई जाती है।
छिटकवां विधि (Broadcasting Method):
- इस विधि में बीजों को खेत में हाथ से बिखेर दिया जाता है और फिर हल्की जुताई करके मिट्टी में दबा दिया जाता है।
- इससे पौधों की उचित वृद्धि नहीं हो पाती।
- खरपतवार की समस्या होती है और बीज की अधिक मात्रा लगती है।
डिब्बली विधि (Dibbling Method):
- बीजों को हाथ से एक-एक करके खेत में लाइन बनाकर 1-2 इंच गहराई में बोया जाता है।
- खरपतवार नियंत्रण आसान होता है।
- कम बीज में अधिक उत्पादन मिलता है।
- मक्का की बुवाई कतारों में करने से अच्छी उपज मिलती है।
👉 यह विधि उन किसानों के लिए उपयोगी है जिनके पास मशीनरी नहीं है।
बीज की मात्रा (Seed Rate for Maize Farming):
किस्म | बीज की मात्रा (प्रति एकड़) |
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संकर (Hybrid) | 8-10 किग्रा |
उन्नत (Improved) | 12-15 किग्रा |
बीज का उपचार (Seed Treatment for Maize):
फफूंदनाशक (Fungicide) उपचार-
- कार्बेन्डाजिम या थायरम (Carbendazim or Thiram) 2-3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें।
- यह कवक रोगों (Fungal Diseases) से बचाव करता है।
कीटनाशक (Insecticide) उपचार-
- इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid) 5 मिली प्रति किलो बीज से उपचार करें।
- यह दीमक और अन्य कीटों से बचाव करता है।
बायोफर्टिलाइजर (Biofertilizer) उपचार-
- राइजोबियम, पीएसबी (Phosphate Solubilizing Bacteria), एजोटोबैक्टर का प्रयोग करें।
- यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और पौधों को अधिक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।
👉 बीज उपचार के बाद बीजों को छाया में सुखाकर ही बुवाई करें।
मक्का की बुवाई में बीज की गहराई और दूरी (Seed Depth & Spacing for Maize Sowing):
फसल किस्म | पौधे से पौधे की दूरी | कतार से कतार की दूरी | गहराई |
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संकर मक्का | 9-12 इंच (20-30 सेमी) | 24-27 इंच (60-70 सेमी) | 1.5-2 इंच |
देशी मक्का | 8-10 इंच | 18-24 इंच | 1.5-2 इंच |
सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Ridge Sowing):
पहली सिंचाई – बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
दूसरी सिंचाई – 20-25 दिन बाद जब पौधे 6-8 इंच के हो जाएं।
मुख्य सिंचाई समय:
- तना बनने के समय (30-35 दिन)
- फूल आने के समय (50-60 दिन)
- दाना भरने के समय (70-80 दिन)
👉 मेढ़ पर बुवाई से सिंचाई करते समय पानी केवल क्यारियों (Furrows) में दें, जिससे नमी बनी रहे और पौधों की जड़ों को सीधा पानी न मिले।
उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management for Ridge Sowing):
उर्वरक | प्रति एकड़ मात्रा | कब डालें? |
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नाइट्रोजन (N) | 40-50 किग्रा | बुवाई के समय 25%, 30 दिन बाद 50%, 45 दिन बाद 25% |
फास्फोरस (P) | 20-25 किग्रा | बुवाई के समय |
पोटाश (K) | 15-20 किग्रा | बुवाई के समय |
जिंक सल्फेट (ZnSO4) | 10 किग्रा | बुवाई के समय |
गंधक (Sulfur) | 10-15 किग्रा | बुवाई से पहले मिट्टी में मिलाएं |
👉 उर्वरक को मेढ़ की सतह पर डालें और हल्की मिट्टी चढ़ा दें ताकि पोषक तत्व पौधों को सही मात्रा में मिलें।
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Ridge Sowing):
- बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।
- खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजीन (Atrazine) 500 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करें।
- मल्चिंग (Mulching) करने से खरपतवार कम होते हैं और नमी बनी रहती है।
👉 खरपतवार नियंत्रण से मक्का की पैदावार 15-20% तक बढ़ सकती है।