जून (ज्येष्ठ-आषाढ़) माह के प्रमुख कृषि कार्य (Agricultural work in June Month):

जून में खरीफ फसलों की बुआई की तैयारी शुरू होती है, जिसमें धान की नर्सरी, चारा फसलों (मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार, लूसर्न), तिलहनी फसलों (सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, अरण्डी), और रेशेदार फसलों (कपास, जूट) की बुआाई के लिए प्रबंधन किया जाता है। मानसून आने के बाद खरीफ फसलों की पौध रोपाई जुलाई में की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए उन्नत सस्य क्रियाओं को अपनाना आवश्यक है। मौसम के अनुसार कृषि कार्यों की योजना एवं परामर्श पर विशेष ध्यान दें। मौसम की अनिश्चितता, विशेषकर मानसून में, खरीफ फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है। अतः आकस्मिक फसल योजना (Contingency Plan) के तहत बीज, खाद व अन्य संसाधनों की अग्रिम व्यवस्था रखें, ताकि किसी भी स्थिति में वैकल्पिक फसलें ली जा सकें।

May month Farming
June Month Farming

फसल उत्पादन (Crop Production):

धान की नर्सरी (Paddy Nursery)

  • उपयुक्त मृदा का चयन
    • धान की खेती के लिए चिकनी या मटियार मृदा सर्वोत्तम मानी जाती है।
    • मृदा का पीएच मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
    • नर्सरी के लिए ऐसी दोमट मृदा चुनें जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो और पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा हो।
    • नर्सरी स्थल सिंचाई के स्रोत के पास होना चाहिए।
  • नर्सरी की तैयारी
    • बुआई से एक महीना पहले नर्सरी क्षेत्र की तैयारी शुरू करें
    • गर्मियों में खेत की 3-4 बार जुताई करें और उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। इससे मृदा जनित रोगों में कमी आती है।
    • जुताई के बाद पलेवा (पानी भरकर) दें, फिर पतली जल परत बनाए रखते हुए एक दिन के लिए खेत छोड़ दें
  • क्यारियों का निर्माण
    • क्यारी की चौड़ाई 1.5–2.0 मीटर और लंबाई 8–10 मीटर रखें।
    • अलग-अलग किस्मों की नर्सरी बनाते समय, उनके बीच 1.5–2.0 मीटर का अंतर अवश्य रखें, ताकि प्रजातियों की मिलावट से बचा जा सके
    • क्यारियों की उचित देखभाल से पौध स्वस्थ, रोगमुक्त एवं उत्पादनक्षम बनती है।
  • मृदा शोधन (Soil Treatment): मृदा शोधन के लिए ट्राइकोडर्मा/ब्यूवेरिया (2.5-3.0 कि.ग्रा.) या क्लोरोपायरीफॉस (2.5-3.0 ली./है.) का प्रयोग करें। इससे बीज और मृदाजनित रोगों से बचाव होता है व जमाव अच्छा होता है।
  • बीज का चयन: धान की अच्छी पैदावार के लिए प्रमाणित एवं उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन अत्यंत आवश्यक है। ऐसे बीजों में पंक्तिबद्ध जमाव, प्रजाति की शुद्धता एवं रोगमुक्तता की गारंटी होती है।
  • बीज की मात्रा (हैक्टर अनुसार):
    • मोटे दानों वाली किस्में: 30–35 कि.ग्रा./हेक्टेयर
    • बासमती किस्में: 20–25 कि.ग्रा./हेक्टेयर
    • एक हेक्टेयर रोपाई हेतु नर्सरी क्षेत्र: 500 वर्ग मीटर पर्याप्त
  • बीजोपचार विधि: बीजों को बीज जनित रोगों से बचाने हेतु निम्न उपचार करें:
    • 10 लीटर पानी में मिलाएँ:
      • इमिसान: 5 ग्राम (या बाविस्टीन: 10 ग्राम)
      • पोसामाइसिन: 2.5 ग्राम (या विकल्प में स्टैप्टोसाइक्लीन 1 ग्राम या एग्रीमायसिन 2.5 ग्राम)
    • 20–25 कि.ग्रा. बीज इस घोल में 24 घंटे भिगोकर रखें
    • भिगोने के बाद बीजों को 24–36 घंटे अंकुरित होने दें
    • अंकुरण के दौरान बीजों पर हल्का पानी छिड़कते रहें ताकि नमी बनी रहे।
    • अंकुरित बीजों को नर्सरी क्यारियों में पतली पानी की सतह पर समान रूप से छिड़कें
  • प्रारंभिक देखभाल:
    • जब तक नवपौध पूरी तरह हरी न हो जाए, तब तक पक्षियों से सुरक्षा हेतु सावधानी बरतें।
    • अंकुरित बीजों को शुरुआत के 2–3 दिनों तक पुआल से ढँकें
    • यह प्रक्रिया जड़ गलन, झोंका रोग और पत्तियों के झुलसा रोग से सुरक्षा देती है।
  • बुआई का उपयुक्त समय:
    • बुआई का समय किस्म के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है।
    • सामान्यतः 15 मई से 25 जून तक का समय धान की बुआई के लिए उपयुक्त होता है।
  • पोषक तत्व प्रबंधनः अच्छी फसल के लिए संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग आवश्यक है। 1000 वर्गमीटर क्षेत्र में 10 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 10 कि.ग्रा. डाई-अमोनियम फॉस्फेट और 2.5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट जुताई से पहले मिट्टी में मिलाएं। 10-12 दिनों बाद यदि पौधों का रंग पीला हो, तो 10 कि.ग्रा. यूरिया/1000 वर्ग मीटर की दर से दो बार मिट्टी में मिलाएं।
  • खपतवार प्रबंधनः धान नर्सरी में बुआई के 1-2 दिन बाद पायराजोसल्फ्यूरॉन (250 ग्राम/है.) को 10-15 किग्रा रेत में मिलाकर छिड़कें, फिर 1-2 सेमी हल्का पानी भरें ताकि खरपतवार नष्ट हों।
  • प्रजाति अनुसार रोपाई समय:
    • मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्में: जुलाई के पहले पखवाड़े तक रोपाई पूरी करें।
    • शीघ्र पकने वाली किस्में: जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक रोपाई की जा सकती है।
    • सुगंधित किस्में (जैसे बासमती): जुलाई के अंत में रोपाई प्रारंभ करें।
  • मृदा पोषण प्रबंधन: प्रति वर्ष, धान-गेहूं लेने वाले खेतों में 100–120 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या हरी खाद का प्रयोग अवश्य करें, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहे।
  • धान की पौध रोपाई और उखाड़ना:
    • पौध की उपयुक्त आयु
      • 20–25 दिन की आयु वाली पौध मुख्य खेत में लगाना सबसे उपयुक्त होता है।
      • ज्यादा उम्र की पौध लगाने से फुटाव (tillering) कम होता है।
    • पौध उखाड़ने की विधि
      • रोपाई से एक दिन पहले नर्सरी में सिंचाई करें।
      • पौध उखाड़ते समय कमजोर, रोगग्रस्त या अन्य किस्मों की पौध को अलग करें
      • पौध को 5–8 से.मी. व्यास के नरम बंडलों में बाँधें।
    • रोपाई का तरीका
      • पंक्ति से पंक्ति दूरी: 20–30 सेमी, पौधे से पौधे दूरी: 15 सेमी
      • 3 से.मी. गहराई में रोपाई करें।
      • प्रत्येक स्थान पर 2–3 पौधे लगाएं।
      • 1 वर्ग मीटर में कम से कम 33 पौधे होने चाहिए।
    • सुझाव: पौध की जड़ों को उखाड़ते समय चोट न पहुँचे, अन्यथा फसल की वृद्धि पर असर होगा।
  • किस्मों का चयनः अच्छी पैदावार और गुणवत्ता के लिए प्रजाति का चयन बहुत आवश्यक है। जल स्रोत, फसलचक्र और बाज़ार की मांग को ध्यान में रखते हुए किस्में चुनें।
  • खाद एवं उर्वरक की मात्राः धान की अधिक पैदावार के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और जिंक का संतुलित उपयोग करें। बौनी किस्मों के लिए 100-120 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर दें। बासमती की लम्बी किस्मों के लिए 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन पर्याप्त होती है। यूरिया को तीन हिस्सों में – रोपाई के बाद, कल्ले निकलने पर और फूल आने से पहले दें। जैविक खाद के प्रयोग पर नाइट्रोजन की मात्रा घटाएं।

धान की सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice – DSR):

  • सीधी बुआई विधि में नर्सरी की आवश्यकता नहीं होती — बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं।
  • यह तकनीक श्रम और लागत दोनों की बचत करती है।
  • प्रति एकड़ लगभग ₹6000 तक की लागत में कमी आती है।
  • 30% तक कम पानी की आवश्यकता होती है, हालांकि शुरुआती दिनों में लगभग रोज सिंचाई करनी पड़ती है।
  • रोपाई के समय 4-5 से.मी. पानी की गहराई बनाए रखना चाहिए।
  • DSR दो तरीकों से किया जा सकता है:
    • सूखा-DSR (Dry-DSR)
    • गीला-DSR (Wet-DSR)
  • यह विधि पारंपरिक धान रोपाई की तुलना में जुताई और फसल स्थापना के तरीके में भिन्न होती है।

सूखी डीएसआर विधि (Dry-DSR Method)

  • इस विधि में धान की बुआई बिना नर्सरी और जलभराव के की जाती है।
  • बीजों को सूखी मिट्टी में सीधे बोया जाता है।
उपयोग की जाने वाली प्रमुख तकनीकें:
  • जीरो टिलेज (बिना जुताई के सीधे बीज बोना)
  • पारंपरिक जुताई के बाद सूखे बीजों का प्रसारण
  • डिबल्ड विधि: अच्छी तरह तैयार खेत में बीजों को हाथ या यंत्र से एक-एक कर बोना
  • ड्रिलिंग विधि: पंक्तियों में मशीन से बीजों की बुआई

🔄 यह विधि पानी और श्रम की बचत करती है, लेकिन अच्छी खेत तैयारी और समय पर सिंचाई जरूरी होती है।

💧 गीला डीएसआर विधि (Wet DSR Method)

  • इस विधि में अंकुरित बीजों को पोखरयुक्त (Puddled) मृदा में बोया जाता है।
प्रमुख प्रकार:
  • एरोबिक गीला डीएसआर:
    • अंकुरित बीजों को मृदा की सतह पर बोया जाता है।
    • बीज वायवीय (Aerobic) वातावरण में अंकुरित होते हैं।
  • एनारोबिक गीला डीएसआर:
    • बीजों को मृदा में दबाकर बोया जाता है।
    • बीज अवायवीय (Anaerobic) वातावरण में बढ़ते हैं।
बीज बोने की तकनीकें:
  • 📌 बीज प्रसारण (Broadcasting)
  • 📌 इम सीडर 81 (IM Seeder 81) या
  • 📌 अवायवीय सीडर द्वारा फरों ओपनर (Furrow Opener) का उपयोग

🔍 यह विधि पारंपरिक रोपाई की तुलना में कम श्रम और समय लेती है, लेकिन मृदा की नमी और तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी होता है।

एरोबिक धान विधि की पूरी जानकारी (Aerobic Rice Farming)
  • 🚿 सिंचित व वर्षा जल की कमी को देखते हुए यह विधि लाभदायक है।
  • सीधी बुआई: देसी हल, सीड ड्रिल या पैडी ड्रम सीडर से सीधे खेत में बुआई की जाती है।
  • 📅 बुआई का समय: जून माह उपयुक्त।
  • 📌 बीज मात्रा: 25–30 कि.ग्रा./हैक्टर
  • 📏 पंक्ति दूरी: 25×10 सें.मी.
  • 🌱 खाद सिफारिश:
    • 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन
    • 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस
    • 60 कि.ग्रा. पोटाश
    • 25–30 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट

🌿 यह विधि कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के साथ अपनाई जाती है और सूखे क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावी है।

ग्रीष्मकालीन मक्का, ज्वार एवं बाजरा(Summer Maize, Sorghum and Millet):

  • मक्का (Maize):
    • दाने वाली मक्का की कटाई तब करें जब भुट्टों की ऊपरी पत्तियाँ सूखने लगें और दाने सख्त हो जाएं (25-30% नमी)।
    • कटाई के बाद भुट्टों को एक सप्ताह तक धूप में सुखाएं।
    • सुखाने के बाद कॉर्नशेलर से दाने अलग करें।
    • बेबीकॉर्न की तुड़ाई रेशा (सिल्क) निकलने के 2–3 दिन बाद करें।
    • स्वीटकॉर्न की तुड़ाई रेशा निकलने के लगभग 20–22 दिन बाद करें, जब शर्करा की मात्रा सबसे अधिक होती है।
  • ज्वार (Sorghum):
    • हरे चारे के लिए पहली कटाई बुआई के 50–60 दिनों बाद करें।
    • इसके बाद हर 30–35 दिन में कटाई करें (कुल 3 कटाइयाँ संभव)।
    • बीज के लिए एक बार ही कटाई करें।
    • फूल आने की अवस्था में कटाई करने से पौष्टिक चारा मिलता है।
    • लोबिया का हरा चारा फली बनने की अवस्था (2–3 माह बाद) में काटें।
  • बाजरा (Pearl Millet):
    • फूल आने से पहले बाजरे की फसल को चारे के लिए काटें।
    • यदि इस समय न काट सकें तो 50% फूल आने पर जरूर काटें।
    • बुआई के 65–70 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

खरीफ मक्का, ज्वार, बाजरा और अन्य श्रीअन्न:

  • मक्का:
    • मक्का की बुआई के लिए, देर से पकने वाली किस्मों को मध्य मई से मध्य जून तक पलेवा करके बोना चाहिए ताकि बारिश से पहले पौधे ठीक से स्थापित हो जाएं और 15 दिन बाद निराई हो सके। शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुआई जून के अंतिम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए।
    • खेत की तैयारी: खरीफ के मौसम में मक्का के लिए, खेत को तैयार करने के लिए हैरो से एक गहरी जुताई और उसके बाद कल्टीवेटर से 2-3 जुताई पर्याप्त होती हैं। जुताई के बाद पाटा लगाना ज़रूरी है ताकि खेत में नमी बनी रहे।
    • उपयुक्त मिट्टी: मक्का की खेती के लिए दोमट से लेकर बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। यह मिट्टी गहरी, भारी गठन वाली होनी चाहिए, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी हो और जल निकासी की उचित सुविधा हो। लवणीय और क्षारीय मिट्टी मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
    • खरीफ मक्का की उन्नत संकर प्रजातियां:
      • जल्दी पकने वाली (85-95 दिन): पीईएचएम 2, 3, 5, विवेक संकर मक्का 4, ये सिंचित और वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
      • पूर्णकालिक परिपक्वता (100-110 दिन): पूसा जवाहर संकर मक्का-1, गुजरात आनंद व्हाइट मक्का हाइब्रिड-2, एमएम 9344, पूसा एचएम-9 इम्प्रूव्ड, प्रताप मक्का-9, कंचन-2, डब्ल्यूसी-236; समय पर सिंचाई और वर्षा सुनिश्चित क्षेत्रों में।
      • प्रोटीनयुक्त प्रजातियां: एचक्यूपीएम -1, 4, 5, 7, विवेक क्यूपीएम- 9, शक्तिमान- 1, 3, 4। ये सिंचित क्षेत्रों व समय पर बुआई हेतु उपयुक्त होता है।
      • विशेष प्रकार:
        • बेबीकॉर्न: पूसा संकर 2, 3, एचएम-4, बीएल-42, जी-5414।
        • पॉपकॉर्न: पर्ल पॉपकॉर्न, अम्बर पॉपकॉर्न।
        • स्वीटकॉर्न: प्रिया, माधुरी।
    • खरीफ मक्का की बुआई और बीज प्रबंधन:
      • खरीफ मक्का में प्रति हेक्टेयर 65,000 से 78,000 पौधे प्राप्त करने के लिए 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
      • बुआई गहराई: 4-5 सेमी (सामान्य: 3.5 सेमी हल के पीछे कूड़ों में)।
      • दूरी:
        • बीज उत्पादन: पंक्ति से पंक्ति 60-75 सेमी, पौधे से पौधा 12-15 सेमी।
        • सामान्य बुआई:
          • अगेती किस्में: पंक्ति 45 सेमी, पौधा 20 सेमी।
          • मध्यम/देर से पकने वाली: पंक्ति 60 सेमी, पौधा 25 सेमी।
      • संकर बीज उत्पादन: नर:मादा बीज 2:4 पंक्तियों में बोएं।
    • मक्का में उर्वरक प्रबंधन:
      • उर्वरक मात्रा: उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें। सामान्यतः 120-150 किग्रा नाइट्रोजन, 75 किग्रा फॉस्फोरस, 75 किग्रा पोटाश/है.
      • प्रयोग समय:
        • नाइट्रोजन: 1/4 बुआई से पहले, शेष दो बराबर हिस्सों में टॉप ड्रेसिंग (घुटना ऊंचाई और जड़ें निकलने पर)।
        • फॉस्फोरस और पोटाश: पूरी मात्रा बुआई से पहले।
      • जैविक खाद: 6-8 टन/है. गोबर खाद बुआई से 15-20 दिन पहले, इससे नाइट्रोजन की आवश्यकता 25% कम हो सकती है।
      • जिंक: 20-25 किग्रा जिंक सल्फेट/है. अंतिम जुताई में, यदि कमी के लक्षण हों।
    • मक्का में सिंचाई: मक्के की अच्छी पैदावार के लिए सिल्किंग से दाना बनने तक और प्रारंभिक वृद्धि अवस्था में नमी आवश्यक होती है। यदि बारिश न हो तो सिंचाई अवश्य करें। बारिश के बाद जल निकासी की व्यवस्था ज़रूरी है, वरना पौधे पीले पड़ सकते हैं।
    • खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण के लिए दो बार निराई-गुड़ाई करें—पहली 15-20 दिन और दूसरी 35-40 दिन बाद। इससे खरपतवार कम होते हैं और जड़ों को ऑक्सीजन मिलती है। रासायनिक नियंत्रण के लिए एट्राजीन (1.5–2.0 कि.ग्रा./हेक्टेयर) या एलाक्लोर (4–5 ली./हेक्टेयर) का छिड़काव 600-800 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2-3 दिन बाद, अंकुरण से पूर्व करें। अगर अंकुरण हो चुका हो, तो टोपरामीजोन (33.6% सक्रिय तत्व) या टेम्बोट्रिओन (50 ग्राम सक्रिय तत्व) प्रति एकड़, 500-600 ली. पानी में, बुआई के 20-30 दिन बाद छिड़काव करें।
      • महत्वपूर्ण नोट: यदि आप मक्का के बाद आलू की खेती करना चाहते हैं, तो एट्राजीन का प्रयोग न करें
  • ज्वार की खेती:
    • जलवायु: शुष्क जलवायु में सफल; 25-35°C तापमान और 40-60 से.मी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त।
    • मिट्टी: हल्की दोमट, बलुई दोमट या भारी दोमट, जिसमें अच्छा जल निकास हो।
    • बुआई समय: जून के अंत से जुलाई के पहले सप्ताह तक। बारानी क्षेत्रों में वर्षा के तुरंत बाद बुआई करें।
    • बीज मात्रा: संकर प्रजातियों के लिए 8-9 कि.ग्रा./हेक्टेयर और सामान्य के लिए 10-12 कि.ग्रा./हेक्टेयर।
    • दूरी: 45×15 से.मी.; प्रति हेक्टेयर लगभग 1,50,000 पौधे।
    • बीज उपचार: कार्बेन्डाजिम, एग्रोसन जीएन या कैप्टन से 2-5 ग्राम/किग्रा बीज के हिसाब से शोधित करें; साथ ही एजोस्पिरिलम व पीएसबी से जैविक उपचार करने से उपज 15-20% तक बढ़ती है।
    • ज्वार की प्रजातियाँ: संकर प्रजातियाँ जैसे CSH 16, SPV-462। चारे वाली प्रजातियाँ जैसे Maldandi (मल्दांडी), पूसा चरी-6, पन्नी संकर ज्वार-5।
    • उर्वरक प्रबंधन: सिंचित क्षेत्र के लिए 100-120 kg नाइट्रोजन, 50-60 kg फॉस्फोरस, 50-60 kg पोटाश/हेक्टेयर। असिंचित क्षेत्र के लिए 50-60 kg नाइट्रोजन, 30-40 kg फॉस्फोरस, 30-40 kg पोटाश/हेक्टेयर। सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए 0.2% जिंक व 0.15% आयरन का पर्णीय छिड़काव, बुआई के 35-40 दिन बाद करे।
    • जैविक खाद: गोबर/कम्पोस्ट खाद 10 टन/हेक्टेयर, बुआई से 15-20 दिन पहले खेत में मिलाएं। इससे मिट्टी की गुणवत्ता व जलधारण क्षमता बढ़ती है।
  • बाजरा की खेती:
    • जलवायु और मृदा: शुष्क, 28-32°C, दोमट मृदा, अच्छा जल निकास।
    • खेत तैयारी: 20-22 टन गोबर खाद, 2-3 हैरो जुताई, समतल भूमि।
    • बुआई: 15 जून-15 जुलाई, 4-5 किग्रा/है., 45×10-12 सेमी दूरी, 2-3 सेमी गहराई, 1.75-2 लाख पौधे/है.
    • प्रजातियां: पूसा 23, 415, 605, एचएचबी 50, 67, बलवान 4903।
    • पोषक तत्व: संकर: 80-90 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश/है., संकुल: 20 किग्रा नाइट्रोजन, 25 किग्रा फॉस्फोरस, 25 किग्रा पोटाश/है.। थायोयूरिया 0.1% छिड़काव (30-35 दिन, सिट्टा बनने पर)।
  • श्रीअन्न फसलों की बुआई:
    • फसलें: कोदो (10-12 किग्रा/है.), चीना, मडुआ, रागी, सांवा (8-10 किग्रा/है.).
    • तैयारी: जून में बुआई की तैयारी शुरू करें।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली (Summer Peanuts)

  • ग्रीष्मकालीन मूंगफली:
    • खुदाई का समय: जब छिलके पर नसें उभरें और भीतरी भाग कत्थई हो जाए।
    • प्रक्रिया: खुदाई के बाद फलियों को सुखाएं।
    • भंडारण सावधानी: गीली मूंगफली का भंडारण न करें, वरना काला पड़कर खाने/बीज के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।
  • खरीफ मूंगफली:
    • खरीफ मूंगफली की बुआई का उचित समय जून का दूसरा पखवाड़ा है। असिंचित क्षेत्रों में, जहां बुआई मानसून के बाद की जाती है, जुलाई के पहले पखवाड़े तक बुआई का काम पूरा कर लें
    • बुआई का तरीका:
      • गुच्छेदार किस्मों के लिए: पंक्ति से पंक्ति 30 सें.मी. और पौधे से पौधे 10 सें.मी. की दूरी रखें। फैलने वाली प्रजातियों के लिए: पंक्ति से पंक्ति 45-60 सें.मी. और पौधे से पौधे 10-15 सें.मी. की दूरी रखें। खरीफ मौसम में, यदि संभव हो, तो मूंगफली की बुआई मेड़ों पर करें।
  • मूंगफली की उन्नत प्रजातियाँ: ICGS-11, ICGS-44, ICCS-37, GG-3, GG-6, GG-12, VRI-2 आदि।
  • बीज दर: मध्यम और अधिक फैलने वाली प्रजातियों के लिए: क्रमशः 80-100 किग्रा और 60-80 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयरगुच्छेदार किस्मों के लिए: 100-125 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
  • बीज उपचार:
    • बुआई से पहले बीज को 2 या 3 ग्राम थीरम या कार्बण्डाजिम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करें।
    • इस उपचार के 5-6 घंटे बाद, बीज को एक विशिष्ट प्रकार के उपयुक्त राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें।
    • उपचार के बाद बीजों को छाया में सुखाएं और तुरंत बुआई के लिए उपयोग करें।
  • पोषक तत्व:
    • नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्रिया के लिए : 20-30 किग्रा नाइट्रोजन, 40-60 किग्रा फॉस्फोरस, 30-40 किग्रा पोटाश/है.
    • बारानी क्षेत्रों के लिए: 15-20 किग्रा नाइट्रोजन, 30-40 किग्रा फॉस्फोरस, 20-25 किग्रा पोटाश/है.
    • गंधक व कैल्शियम हेतु: जिप्सम 200-400 किग्रा/है. (आधी बुआई और आधी फूल आने पर 5 सेमी गहराई में)।
    • सूक्ष्म पोषक तत्व: 2 किग्रा बोरेक्स, 25 किग्रा जिंक सल्फेट/है.

गन्ना (Sugarcane)

  • निराई-गुड़ाई, सिंचाई एवं पोषण:
    • गन्ने की फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई और सिंचाई करें।
    • गन्ने की वृद्धि और उपज बढ़ाने के लिए यूरिया का छिड़काव 5% घोल के रूप में करें।
    • नाइट्रोजन की शेष मात्रा (50 किग्रा/हेक्टेयर) टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालकर मिट्टी चढ़ाएँ।
    • यूरिया का प्रयोग बुआई के 45, 90, 120 और 150 दिन बाद करें।
  • खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार नियंत्रण हेतु हाथ से निराई करें। यदि मई में एट्राजिन का प्रयोग किया गया हो, तो इस माह 2,4-डी (1 किग्रा सक्रिय तत्व/हेक्टेयर) को 500–600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सूरजमुखी (Sunflower)

  • खरीफ सूरजमुखी:
    • मृदा व तापमान:
      • सूरजमुखी की खेती अच्छे जल निकास वाली दोमट व बलुई दोमट मृदा (pH 6.5–8.5) में बेहतर होती है। 26–30°C तापमान इसके लिए उपयुक्त है।
    • बीज उपचार प्रक्रिया:
      • बीजों को 1 लीटर पानी में 20 ग्राम ज़िंक सल्फेट घोल में 12 घंटे भिगोएँ।
      • छाया में तब तक सुखाएँ जब तक बीजों में लगभग 8-9% नमी बच जाए।
      • इसके बाद बाविस्टिन या थीरम से बीजों का उपचार करें।
      • पुनः छाया में सुखाकर PSB (200 ग्राम/किग्रा बीज) से उपचारित करें।
      • अंतिम बार बीजों को 24 घंटे छाया में सुखाएं।
    • बुआई का समय:
      • बीज उपचार के बाद 15 जून से बुआई करना उपयुक्त होता है।
  • ग्रीष्मकालीन सूरजमुखी
    • जब फूलों का पिछला भाग नींबू जैसा पीला हो और निचले पत्ते सूखने लगें, तब कटाई का सही समय होता है।
    • सभी पत्तों के सूख जाने पर कटाई करें और फूलों को 2-3 दिन सुखाएं।
    • बीज निकालने के लिए सूखे फूलों को लकड़ी या मशीन से पीटें।
    • बीजों को भंडारण से पहले सुखाएं, ताकि नमी 10% से कम हो जाए।
    • सूरजमुखी के डंठल दुधारू पशुओं के लिए उपयोगी चारा होते हैं।

ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द(Summer Moong and Urad)

  • फसल तब दैहिक रूप से परिपक्व मानी जाती है जब प्रकाश-संश्लेषित पदार्थों का आर्थिक भाग में स्थानांतरण रुक जाता है। जब 75-80% फलियाँ पक जाएं, तो उन्हें हंसिया से काट लेना चाहिए और एक-दो दिन के लिए खेत में ही सूखने देना चाहिए। कटाई में देरी करने पर फलियाँ चटक सकती हैं।
  • कटाई के बाद मड़ाई करें और दानों को तब तक धूप में सुखाएं जब तक उनमें नमी 12% से कम न रह जाए। इसके बाद दानों को स्वच्छ और सूखे स्थान पर भंडारित करें।
  • ग्रीष्मकालीन फसल की कटाई एक साथ की जाती है, लेकिन खरीफ फसल में कई बार बारिश के कारण एक साथ कटाई संभव नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में फलियों की तुड़ाई 2-3 बार की जा सकती है।
  • इस विधि का उपयोग करके किसान मूंग और उड़द की अच्छी फसल उगा सकते हैं और प्रति हेक्टेयर 12-14 क्विंटल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

कपास (Cotton)

अरहर

  • कपास, एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, व्यावसायिक रूप से ‘श्वेत स्वर्ण’ कहा जाता है।
  • जलवायुः कपास के लिए 16°C (जमाव), 21-27°C (बढ़वार), 27-32°C (फलन) तापमान, रात में ठंडक, 50 सेमी वर्षा, एवं गूलरों के फटने के समय चमकीली धूप आवश्यक है।
  • मृदाः कपास के लिए 5.5-8.5 पीएच वाली बलुई एवं बलुई दोमट मृदा, जिसमें जलधारण एवं जल निकास की अच्छी क्षमता हो, उपयुक्त है।
  • फसल पद्धतिः फसल चक्र अपनाएं और प्रमाणित एवं रोग प्रतिरोधी बीजों का उपयोग करें। बीजोपचार अवश्य करें।
  • बुआईः कपास की बुआई अप्रैल-मई में पंक्तियों को अमेरिकी/देसी 60×30 सेमी, संकर 90×60 सेमी की दूरी में सीड ड्रिल या हल से करें, जिसमें अमेरिकन, संकर और देसी प्रजातियों के लिए क्रमशः 15-20, 2-2.5 और 15-16 कि.ग्रा./हैक्टर बीज की आवश्यकता होती है।
  • जल प्रबंधनः कपास की बुआई सिंचित क्षेत्रों में 15-25 मई और बारानी क्षेत्रों में मानसून शुरू होने पर करें। कपास में 3-4 सिंचाइयां आवश्यक हैं, अंतिम सिंचाई एक तिहाई टिंडे खुलने पर करें।
  • खरपतवार प्रबंधनः कपास में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के 30-35 दिन पूर्व सूखी गुड़ाई करें और फूल-गूलर बनने पर कल्टीवेटर की बजाय खुर्पी से खरपतवार निकालें।

चारा वाली फसलें (Fodder Crops)

  • बरसीम, जई, लोबिया की बीज वाली फसलों की कटाई करें और 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें, मई में हरे चारे के लिए बाजरा, ज्वार, मक्का की बुआई कर सकते हैं।
  • किस्मों का चयनः मई में चारे के लिए सिंचित क्षेत्रों में बाजरा (पीसीबी 141), मकचरी (टीएल-1), नेपियर-बाजरा संकर (पीवीएन-233, संकर-21), ज्वार (जे.एम. 20, एच.सी. 136, आदि), मक्का (जे. 1006, प्रभात), गिनी घास (पी.जी.जी. 518), ग्वार (एफ.एस. 277), लोबिया (लोबिया-88) बोएं। चारा फसलो की मिश्रित बुवाई से पौष्टिक चारा, अधिक पैदावार, और ज्यादा कटाई मिलती है।
  • पोषक तत्व प्रबंधनः मिश्रित चारे के लिए बीज उपचारित कर, 2-3 जुताई के बाद 10 टन गोबर खाद और 1 बोरा यूरिया डालकर बोएं।
  • कटाई: चारे की अच्छी बढ़वार पर आवश्यकतानुसार कटाई करें और प्रत्येक कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया छिड़कें।

हरी खाद वाली फसलें (Green Manure Crops)

  • हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, मूंग, उड़द आदि दलहनी फसलें प्रमुख हैं, जिनका चयन भूमि, जलवायु व उद्देश्य के अनुसार किया जाना चाहिए।
  • हरी खाद के लिए कोमल तना, शाखाएं व पत्तियों वाली, शीघ्र वृद्धि करने वाली, सूखा व जलमग्नता सहनशील फसलें उपयुक्त होती हैं।
  • हरी खाद फसलों जैसे ढैंचा व सनई (बुआई 60 किग्रा/है.) से नाइट्रोजन मिलने के साथ-साथ इन्हें अन्य उपयोग में भी लाया जा सकता है।
  • हरी खाद देने के लिए दलहनी व गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि काल में जुताई कर मिट्टी में दबाया जाता है, जिससे मृदा की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ती है। दलहनी फसलें नाइट्रोजन को स्थिर कर भूमि की उर्वरक शक्ति बढ़ाती हैं और चारा व पोषक तत्व भी उपलब्ध कराती हैं।
  • हरी खाद के लिए बुआई से पहले बीज को 12 घंटे पानी में भिगोने से अंकुरण तेजी से होता है। 35-40 दिनों में फसल पलटने योग्य हो जाती है, इसलिए धान की रोपाई से पहले ढैंचा, सनई और लोबिया की बुआई करना लाभदायक रहता है।
  • हरी खाद वाली फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि एवं कृषि तकनीकों पर निर्भर करती है।
विभिन्न फसलों की उत्पादन क्षमता निम्नलिखित है:
नाइट्रोजन और हरे पदार्थ की मात्रा
फसल का नामप्राप्त नाइट्रोजन (कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)नाइट्रोजन का प्रतिशतहरे पदार्थ की मात्रा (टन प्रति हैक्टर)
लोबिया74-880.4915-18
सनई86-1290.4320-30
ढैंचा84-1050.4220-25
मूंग38-480.488-10
उड़द41-490.4110-12
ग्वार68-850.3420-25
कुल्थी26-330.338-10

मृदा परीक्षण (Soil Testing)

  • मृदा परीक्षण का यह उपयुक्त समय है। इसके द्वारा मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा, पीएच मान और सूक्ष्म जीवों की संख्या की जानकारी मिलती है। इससे हम मृदा की स्थिति सुधारने के लिए उचित कदम उठा सकते हैं और फसलचक्र का सही चयन कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • मृदा नमूना लेने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
    • एक हैक्टर खेत से 15 स्थानों से 15 सें.मी. गहराई तक मृदा नमूने खुरपी से इकट्ठा करें।
    • मृदा नमूना खाद वाले स्थान, छायादार स्थान या सिंचाई नाली के पास से न लें।
    • खेत से इकठ्ठे किए गए नमूनों को अच्छे से मिला कर 500 ग्राम मृदा कपड़े की थैली में भरकर, पूरा विवरण लिखकर प्रयोगशाला में भेजें।
    • नमूनों की जांच के बाद मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त करें, ताकि अगली खरीफ की फसल में मृदा स्वास्थ्य के आधार पर उचित खाद और उर्वरकों का प्रयोग किया जा सके।

मृदा सौरीकरण एवं समतलीकरण (Soil Solarization and Leveling)

  • गर्मी की जुताई से खरीफ की बुआई के लिए खेत की तैयारी आसान और तेज हो जाती है।
  • यदि जुताई संभव नहीं हो तो मृदा सौरीकरण किया जा सकता है, इसके लिए भूमि पर पॉलीथीन चादर बिछाएं, जिससे कीटाणु, बीज और कीट के अंडे नष्ट हो जाते हैं।
  • खेत समतल न होने पर लेवलर का उपयोग कर समतलीकरण करें, ताकि सिंचाई समान रूप से हो सके और पानी की बचत भी हो।

ग्रीष्मकालीन जुताई (Summer Plowing)

  • मिट्टी पलटने वाले हल से गर्मी की जुताई करने से मिट्टी की ऊपरी परत नीचे चली जाती है और फसल अवशेष व खरपतवार दब जाते हैं, जो सड़कर कार्बनिक खाद में बदलते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता, संरचना और भौतिक दशा में सुधार होता है।
  • गर्मी की जुताई के लाभ:
    • मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है।
    • गर्मी की जुताई से मृदा में वायु, सूर्य के प्रकाश और जलवायु के संपर्क में आने से खनिज तत्व पौधों के लिए अधिक उपयोगी रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
    • गर्मी की जुताई से हानिकारक कीट व रोगकारक सतह पर आकर तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं, जिससे कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है।
    • गर्मी की जुताई से मिट्टी में जीवाणु तेज़ी से बढ़ते हैं, जो दलहनी फसलों के लिए बहुत फायदेमंद है।
    • गर्मी की जुताई से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है, क्योंकि उनके बीज तेज धूप और गर्मी से नष्ट हो जाते हैं।
    • बारानी (वर्षा आधारित) क्षेत्रों में वर्षा के पानी का संचयन बढ़ाने के लिए गर्मी की गहरी जुताई लाभदायक होती है, जिससे 31.3% वर्षा जल का अवशोषण संभव होता है।
    • गर्मी की जुताई से मिट्टी के कटाव में 66.5% तक कमी आती है।
    • गर्मी की जुताई से गोबर की खाद और अन्य कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में अच्छे से मिल जाते हैं, जिससे पोषक तत्व जल्दी फसलों को मिलते हैं।

सब्जियों की खेती (Vegetable Farming):

कद्दूवर्गीय फसलें (Cucurbitaceous Crops)

  • कद्दूवर्गीय फसलों (लौकी, कद्दू, तोरई, काशीफल, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा) की बुआई मार्च-अप्रैल में होती है। इस समय हरी फसलें कम होने से कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, इसलिए इनके नियंत्रण पर ध्यान देना ज़रूरी है। पौध अवस्था में फसल स्वस्थ रहने पर आगे अच्छी उपज की संभावना रहती है।
  • सिंचाई: गर्मी में, खासकर मई में, सामान्य तौर पर 5-8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें।
  • कीट प्रबंधनः फल मक्खी और लाल कद्दू कीट प्रमुख कीट हैं। इनके नियंत्रण के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फल मक्खी के नियंत्रण के लिए भी कार्बोरिल 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें। ध्यान दें, कीटनाशी का छिड़काव फल टूटने के बाद ही करें।
  • रोग प्रबंधनः मृदु रोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता और जड़ विगलन फफूंदी जनित रोग हैं। रोकथाम के लिए रोगग्रस्त अवशेष नष्ट करें। मृदु रोमिल आसिता के लिए मैंकोजेब 2.5 मिली/लीटर पानी में छिड़कें। बुकानी रोग के लिए कैराथैन 1 लीटर या 3 किग्रा घुलनशील गंधक/हेक्टेयर को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

भिंडी (Ladyfinger)

  • सिंचाई: भिंडी की बुआई फरवरी-मार्च में होती है। पुष्पण और फली विकास के दौरान 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
  • रोग प्रबंधन: भिंडी में मोजैक और पर्ण कुंचन रोग सफेद मक्खी से फैलते हैं। मोजैक में पीली चित्ती और पीली नसें दिखती हैं। लीफ कर्ल में पत्तियां गड्ढेदार हो जाती हैं। नियंत्रण के लिए एसिटामाइप्रिड 3 ग्राम/10 लीटर पानी या कॉन्फिडोर (0.3-0.5 मिली/लीटर पानी) बुआई के 20 दिन बाद और फिर 15 दिन के अंतर पर डालें। दूसरा छिड़काव स्पाइरोमसीफेन 2 ग्राम/लीटर पानी में करें।
  • कीट नियंत्रण: फली और तना छेदक कीट फलियों और तनों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे उपज घटती है। इसके नियंत्रण के लिए एमामेक्टिन बेन्जोएट (2 ग्राम/10 लीटर) या स्पिनोसैड (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा 50,000 कार्ड प्रति हेक्टेयर छोड़ने से भी कीट कम होते हैं। पत्ती काटने वाले कीट के लिए साइपरमेथ्रिन (0.5 मिली/लीटर) का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।

टमाटर, बैंगन एवं मिर्च (Tomatoes, Brinjals and Chillies)

  • जलवायु एवं मृदाः मूली की खेती के लिए ग्रीष्म ऋतु और 21-30 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा होता है। अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी तथा 6-7 पी-एच मान वाली भूमि उपयुक्त है।
  • बुआईः बैंगन की बीज बुआई मई-जून में और रोपाई जून से मध्य जुलाई तक की जाती है। बुआई के बाद नर्सरी को पुआल/घास से ढकने से अंकुरण बढ़ता है। नर्सरी में तुरंत फव्वारे से सिंचाई करें। मई के दूसरे सप्ताह में मिर्च की नर्सरी लगाएं, एक एकड़ के लिए 400 ग्राम बीज पर्याप्त है। उन्नत किस्में पूसा सदाबहार एवं पूसा ज्वाला 80-100 क्विंटल हरी मिर्च देती हैं। रोगों से बचाव के लिए 400 ग्राम बीज को 1 ग्राम कैप्टॉन या थीरम से उपचारित करें।
  • पोषक तत्व प्रबंधनः खेत तैयार करते समय 25 टन/हेक्टेयर सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद मिट्टी में मिलाएं। रोपाई से पहले 150 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस और 60 किग्रा पोटाश डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय और बाकी आधी फूल आने पर प्रयोग करें।
  • खरपतवार नियंत्रणः पौध रोपाई से पहले पेण्डीमेथिलीन (स्टॉम्प) 3 लीटर प्रति हेक्टेयर डालें (जमीन में नमी होनी चाहिए)। निराई-गुड़ाई से भी खरपतवार नियंत्रित कर सकते हैं। रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को कॉन्फिडोर कीटनाशी के 1 लीटर पानी के घोल से उपचारित करें। मार्च में रोपे गए टमाटर, बैंगन और मिर्च में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। टमाटर और मिर्च में रोपाई के 45-50 दिन बाद 35 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें। टमाटर के फलों को सफेद होने से बचाने के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन करें, 3-4 पंक्तियों के बीच सनई या कैंचा लगाएं, और अधिक पत्तियों वाली किस्मों का चुनाव करें।
  • कीट प्रबंधनः तम्बाकू की सूंडी के लिए फेरोमोन ट्रैप लगाकर कीट नष्ट करें। सफेद मक्खी से बचाव के लिए कॉन्फिडोर 0.3 मिली/लीटर पानी में घोलकर 30 दिन के अंतर पर छिड़कें। टमाटर और बैंगन में फल छेदक सुंडी से बचाव के लिए, फलों की तुड़ाई के बाद डेल्टामेथ्रिन 2.8 EC 1.0 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अच्छी पैदावार के लिए टमाटर में निराई-गुड़ाई करते रहें और पौधों के पास मिट्टी चढ़ाएं। बैंगन में तना और फल छेदक गंभीर कीट है। नियंत्रण के लिए 10 मीटर पर 100 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाकर वयस्क नर कीटों को पकड़कर नष्ट करें। पेड़ी फसल न लें, क्योंकि इसमें फल छेदक का प्रकोप अधिक होता है। प्रभावित प्ररोहों और फलों को निकालकर मिट्टी में दबा दें। फूल आने से पहले नीम बीज अर्क (5%), बी.टी. 1 ग्राम/लीटर, स्पिनोसेड 1 मिली/4 लीटर, कार्बरिल 2 ग्राम/लीटर या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली/लीटर का प्रयोग करें।
  • पौध संरक्षणः बढ़ने वाली किस्मों को सहारा देने के लिए स्टैकिंग करें। टमाटर के फल फटने से बचाने के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन करें और 0.3-0.4 प्रतिशत बोरॉन का छिड़काव करें।

अदरक (Ginger)

  • बुआईः अदरक की बुआई के लिए 16-18 क्विंटल प्रकंद/है. चाहिए, 30×20 सेमी दूरी और 4 सेमी गहराई पर बोएं, और बुआई से पहले 20-25 ग्राम टुकड़ों को 0.3% कॉपर ऑक्सीक्लोराइड घोल से 10% तक उपचारित करें।
  • किस्मों का चयनः अदरक के लिए सुप्रभा, सुरभि, सुरूचि एवं हिमगिरी उन्नत प्रजातियां हैं, खेत की तैयारी में 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल गोबर खाद के साथ 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पोटाश बुआई से पहले अंतिम जुताई में मिलाएं।

हल्दी (Turmeric)

  • बुआईः हल्दी की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल प्रकंदों की आवश्यकता होती है। बुआई 40×20 सेमी की दूरी और 4 सेमी गहराई पर करें। बुआई से पहले 20-25 ग्राम के हल्दी टुकड़ों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 0.3% घोल से उपचारित करें।
  • किस्मों का चयनः हल्दी की उपयुक्त किस्में: कृष्णा, राजेन्द्र, अमलापुरम, मधुकर।
  • पोषक तत्व प्रबंधनः हल्दी के लिए खेत तैयारी में प्रति हेक्टेयर 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर खाद + 120 किग्रा नाइट्रोजन + 80 किग्रा फॉस्फोरस + 80 किग्रा प्रति हैक्टर पोटाश अंतिम जुताई में मिलाएं।

अदरक, हल्दी और सूरन की बुआई के बाद खेत को सूखी पुआल, घास-फूस या पत्तियों से ढक दें ताकि नमी बनी रहे और अंकुरण अच्छा हो। इस महीने सूरन की बुआई पूरी कर लें।

फूलगोभी (Cauliflower)

  • किस्मों का चयनः फूलगोभी की अगेती उन्नत किस्में: पूसा कार्तिक संकर, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी, पूसा अश्वनी, पूसा मेघना आदि प्रमुख हैं।
  • बीज दर एवं बुआईः अच्छी जमाव क्षमता वाले बीज की दर 500-600 ग्राम/हेक्टेयर और संकर किस्मों के लिए 350-400 ग्राम/हेक्टेयर पर्याप्त है। फूलगोभी की अगेती बुआई के लिए मध्य मई से जून में बीज बोएं और 5-6 सप्ताह की पौध की रोपाई करें।
  • बीज उपचार के लिए 2 ग्राम बाविस्टीन/कैप्टॉन या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज करें; नर्सरी क्यारी छायादार, नम स्थान पर 3.0×0.45×0.15 मीटर आकार में बनाएं, 100 वर्ग मीटर क्यारी 1 हैक्टर के लिए पर्याप्त है।
  • पोषक तत्व प्रबंधनः खेत की तैयारी के समय 25-30 टन/हैक्टर गोबर की खाद मिलाएं। रोपाई से पहले 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 100 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश में से आधी नाइट्रोजन और पूरी फॉस्फोरस-पोटाश मिलाएं। शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर पहला हिस्सा रोपाई के एक महीने बाद और दूसरा हिस्सा फूल बनने के समय मिट्टी चढ़ाते समय डालें।
  • खरपतवार नियंत्रण एवं जल प्रबंधनः खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई से पहले 2.5 ली./है. बेसालीन या 3.3 ली./है. स्टॉम्प छिड़ककर हल्की सिंचाई करें; अगेती फसल में रोपाई के बाद साप्ताहिक, मध्यम/पछेती फसल में 10-15 दिन अंतराल पर सिंचाई करें।
  • रोग प्रबंधनः फूलगोभी की नर्सरी में आर्द्रगलन रोग से बचाव के लिए बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2 ग्राम बाविस्टीन/कैप्टॉन प्रति किग्रा से उपचारित करें, या 25 ग्राम ट्राइकोडर्मा/10 किग्रा गोबर खाद 100 वर्ग मीटर नर्सरी में मिलाएं, या 2 ग्राम/लीटर बाविस्टीन/कैप्टॉन का छिड़काव करें।

फूलगोभी, गांठगोभी, पत्तागोभी, गाजर, मूली, पालक, मेथी और शलजम की बीज वाली फसलों की कटाई करें और बीजों को 8% नमी तक सुखाएं।

मूली: गर्मी के लिए मूली की उपयुक्त किस्म पूसा चेतकी है, जो 45-50 दिनों में तैयार होती है। इसकी बुआई अप्रैल से अगस्त तक की जा सकती है।

फलों की खेती (Fruit Farming):

  • नए बाग लगाने के लिए गड्ढे खोद दें ताकि धूप से कीट और रोग नियंत्रित हो सकें। महीने के अंत में गड्ढों को आधी ऊपरी मिट्टी और आधी कम्पोस्ट में क्लोरोपायरीफॉस मिलाकर पूरी तरह भर दें।
  • गर्मी में बागवानी फसलों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई और आवश्यकतानुसार कटाई-छंटाई करें।
  • आम, अमरूद, पपीता, लीची, अंगूर, आंवला, बेर, नाशपाती, आलूबुखारा और नींबू में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
  • आम में फुदका कीट नियंत्रण के लिए, जब फल मटर के आकार के हों, तो मोनोक्रोटोफॉस 1.25 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। दासी मक्खी के नियंत्रण के लिए कार्बोरिल 0.2%, शर्करा 0.1% और मैलाथियॉन 0.1% मिलाकर ट्रैप बनाकर लटकाएं। खर्रा या पाऊडरी रोग के लिए 0.2% घुलनशील गंधक का प्रयोग करें। कोइलिया फल विकार के लिए फल लगने पर सिंचाई के साथ बोरेक्स 1% का छिड़काव करें। आम के फलों को ऊतक क्षय रोग से बचाने के लिए 8 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फलों के गिरने से रोकने के लिए वृद्धि हार्मोन NAA 20 पीपीएम का छिड़काव करें।
  • अमरूद की सघन बागवानी में 1×2 मीटर दूरी पर पौधे लगाएं, फूल वाली शाखाओं का 3/4 भाग काटें, 10-15 दिन अंतराल पर सिंचाई तथा 10% यूरिया का छिड़काव पुष्पण पर करें। अप्रैल-मई में बहार नियंत्रण के लिए यूरिया छिड़कें, मई में छंटाई करें, और तेज धूप से बचाने के लिए तनों पर कॉपर-चूना लेप लगाएं।
  • कागजी नीबू में फल फटने से बचाव के लिए पोटेशियम सल्फेट का 4% घोल पानी में मिलाकर छिड़कें।
  • लीची के फल मई-जून में पक जाते हैं, जिनका रंग गहरा गुलाबी या लाल होता है। इनकी तुड़ाई मई से जुलाई तक चलती है। फल फटना एक बड़ी समस्या है जो नमी की कमी और गर्म हवाओं से होती है। इससे बचाव के लिए फल लगने से पकने तक हल्की सिंचाई करते रहें। फल विगलन रोग से बचाव के लिए फल पकने से 20-25 दिन पहले बाविस्टीन 10 ग्राम को 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • रोपे गए केले के लिए 1.5 मीटर दूरी पर 50×50 सेमी गड्ढों में 10 किग्रा गोबर खाद, 10 ग्राम कार्बोफ्यूरॉन, 50 ग्राम फॉस्फोरस, और मिट्टी मिलाकर भरें, 25 ग्राम नाइट्रोजन पौधे से 50 सेमी दूर डालकर मिट्टी में मिलाएं और सिंचाई करें।

औषधीय फसलें (Medicinal Crops)

  • मेंथा की फसल में 40-50 किग्रा नाइट्रोजन की तीसरी और अंतिम टॉप ड्रेसिंग ज़रूर करें। पहली कटाई 100-120 दिनों पर (कलियाँ बनने पर) और दूसरी कटाई पहली के 70-80 दिन बाद करें। पौधों को मिट्टी की सतह से 4-5 सेमी ऊपर से काटें। कटाई के बाद पौधों को 2-3 घंटे धूप में छोड़ दें। फिर छाया में हल्का सुखाकर तुरंत आसवन विधि से तेल निकाल लें।
  • सर्पगंधा की नर्सरी मई में डाल सकते हैं। प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए 6-7 किग्रा बीज की ज़रूरत होती है।
  • तुलसी और सफेद मूसली की बुआई इसी महीने में कर सकते हैं, जो फायदेमंद औषधीय फसलें हैं। मई में रोपाई दोपहर के बाद करें और तुरंत सिंचाई करें। हल्की बारिश वाले दिन रोपाई के लिए अच्छे होते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 750 ग्राम से 1 किग्रा तुलसी का बीज काफी है। रोपाई पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 60×30 सेमी रखें।

फूल और सुगंधित पौधे (Flowers and Fragrant Plants):

  • चाइना एस्टर, गेंदा, और कॉर्नेशन में शीर्ष नोचन शुरू करें, और लिलियम में फूलों की तुड़ाई प्रारंभ करें।
  • फूल वाले पौधों में कीट या रोग लगने पर 0.2% फफूंदीनाशक (कैप्टॉन या बाविस्टिन) और 0.2% कीटनाशक (रोगोर, मेटासिस्टॉक्स आदि) का घोल बनाकर 20-25 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।
  • गुलाब के पौधे की आवश्यकतानुसार सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और उनकी वृद्धि अच्छी होती है।
  • रजनीगंधा में एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई और दो सप्ताह के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें। कन्द लगाने का समय फरवरी के अन्तिम सप्ताह से जुलाई तक है।
  • ग्लैडियोलस की खेती में लगभग 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। कंद निकालते समय 2-3 सप्ताह तक पानी रोक दें, इससे पौधों का विकास अच्छा होता है।
  • डेफोडिल और नरगिस में जब कंद से कल्ले निकलने लगें तो सिंचाई कर दें। अच्छी उपज के लिए खेत में नमी बनाए रखें। यदि रोग या कीट का प्रकोप हो तो 0.2% बाविस्टिन और 0.2% रोगोर या मेटासिस्टॉक्स आदि का घोल बनाकर 20-25 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहें।

पशुपालन/दुग्ध विकास (Animal Husbandry/Dairy Development):

  • गर्मी और लू से पशुओं को बचाएं।
  • उन्हें पर्याप्त हरा चारा और स्वच्छ पानी दें। सुबह और शाम उन्हें नहलाएं।
  • सांप काटने पर काटे हुए स्थान से 3 इंच ऊपर-नीचे बांधें, ब्लेड से चीरा लगाकर थोड़ा खून निकालें, और घाव में पोटाश पाउडर डालें।
  • आँख आना होने पर बोरिक ऐसिड को गुनगुने पानी में मिलाकर आँखें धोनी चाहिए। इसे अच्छी तरह से साफ करने के बाद सोफ्रामाईसिन लोशन की 5-5 बूंदें दोनों आँखों में डालें, या फिर लोकुला आई ड्रॉप का इस्तेमाल करें।

मुर्गी पालन (Poultry Farming):

  • मुर्गीखाने के पास छायादार पेड़ लगाएं।
  • एस्बेस्टस/टिन की छत पर पेंट करें ताकि मुर्गीखाना ठंडा रहे।
  • पर्दे पर पानी छिड़ककर ठंडक बनाए रखें।
  • मुर्गियों के चारे में प्रोटीन 18% से बढ़ाकर 20% करें, मूंगफली की खली और मछली का चूरा बढ़ाएं।
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