धान की सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice – DSR) तकनीक

धान की सीड ड्रिल द्वारा सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice – DSR using Seed Drill) एक महत्वपूर्ण संसाधन संरक्षित खेती की तकनीक है, जो धान की खेती में कई लाभ प्रदान करती है। डीएसआर विधि मे धान के पौधे की बिना नर्सरी तैयार किए सीधे खेत में बुआई की जाती है। डीएसआर तकनीक धान की खेती को अधिक टिकाऊ, लागत प्रभावी और जल-कुशल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह विधि किसानों के लिए कई मायनों में अत्यधिक लाभदायक सिद्ध हो रही है।

धान की सीधी बुआई

Direct Seeding of Rice - DSR

डीएसआर के लाभ:

  • सीधी बुआई विधि में नर्सरी की आवश्यकता नहीं होती — बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं।
  • यह विधि फसल को 10-15 दिन पहले तैयार कर देती है।
  • इससे अगली फसल की बुआई उचित समय से करके पूरी फसल प्रणाली की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
  • इस विधि में सबसे खास बात यह है कि किसानों को धान की रोपाई में आने वाले खर्च और श्रम दोनों की बचत होती है।
  • इस तकनीक से लागत में लगभग ₹6000 प्रति एकड़ की कमी आती है।
  • यह विधि पारंपरिक रोपाई की तुलना में 30 प्रतिशत कम पानी का उपयोग करती है। हालांकि शुरुआती दिनों में लगभग रोज सिंचाई करनी पड़ती है।
  • रोपाई के समय 4-5 से.मी. पानी की गहराई बनाए रखना चाहिए।
  • यह विधि पारंपरिक धान रोपाई की तुलना में जुताई और फसल स्थापना के तरीके में भिन्न होती है।

उपलब्ध मशीनें:

वर्तमान समय में सीड ड्रिल द्वारा सीधी बुआई के लिए कई उन्नत मशीनें उपलब्ध हैं, जैसे:

  • जीरो टिल प्लान्टर (Zero Till Planter)
  • टर्बो सीडर (Turbo Seeder)
  • पीसीआर प्लान्टर (PCR Planter)
  • रोटरी डिस्क ड्रिल (Rotary Disc Drill)
  • डब्ल्यू डिस्क कल्टीवेटर (W Disc Cultivator) आदि।

महत्वपूर्ण कृषि क्रियाएं:

धान की अच्छी फसल के लिए बुआई का समय, बीज दर, बीज की गहराई, बीजोपचार एवं खरपतवार नियंत्रण इत्यादि महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं जिन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

बुआई की प्रक्रिया:

  • धान की सीधी बुआई उचित नमी में खेतों में आवश्यकतानुसार ग्लाइफोसेट एवं पैराक्वाट खरपतवारनाशी का प्रयोग कर (प्री-प्लांटिंग या प्री-इमरजेंस) जीरो टिल मशीन से की जाती है।
  • बुआई करने से पहले जीरो टिल मशीन का संशोधन कर लेना चाहिए ताकि वह सही ढंग से काम करे।

ध्यान रखने योग्य बातें:

  • इससे 20-25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज एवं 120 कि.ग्रा. डीएपी (DAP) का उपयोग सुनिश्चित हो।
  • बीज की गहराई 3-4 सें.मी. सुनिश्चित करें। बीज अधिक गहराई में जाने से अंकुरण एवं कल्ले कम होते हैं और पैदावार में कमी आ जाती है
  • इसके अलावा, ड्रिल की नली बंद न हो, इसका खास ध्यान रखना चाहिए
  • यूरिया और म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग मशीन के खाद बक्से में रखकर नहीं करना चाहिए
  • इनका प्रयोग टॉप ड्रेसिंग (ऊपरी छिड़काव/प्रयोग) के रूप में पौध स्थापित होने के बाद सिंचाई उपरांत करना चाहिए।

नई किस्में:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप)-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने बासमती धान की 2 नई किस्में विकसित की हैं जो सीधी बुआई के लिए उपयुक्त हो सकती हैं:

  • पूसा बासमती 1985
  • पूसा बासमती 1979

यह तकनीक धान की खेती को अधिक कुशल और टिकाऊ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।


DSR दो तरीकों से किया जा सकता है:

  • सूखा-DSR (Dry-DSR)
  • गीला-DSR (Wet-DSR)

सूखी डीएसआर विधि (Dry-DSR Method)

  • इस विधि में धान की बुआई बिना नर्सरी और जलभराव के की जाती है। बीजों को सूखी मिट्टी में सीधे बोया जाता है।
  • इस विधि में धान को अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके स्थापित किया जाता है।
  • इसमें जीरो टिलेज (बिना जुताई के सीधे बीज बोना) या पारंपरिक जुताई के बाद बिना पके हुए मृदा पर सूखे बीजों का प्रसारण (broadcast sowing) शामिल है।
  • अच्छी तरह से तैयार खेत में डिबल्ड विधि (dibbled method) से बीजों को हाथ या यंत्र से एक-एक कर बोना और पंक्तियों में मशीन से बीजों की बुआई (ड्रिलिंग) भी सूखे-डीएसआर के तहत आती है।

🔄 यह विधि पानी और श्रम की बचत करती है, लेकिन अच्छी खेत तैयारी और समय पर सिंचाई जरूरी होती है।

गीला डीएसआर विधि (Wet DSR Method)

  • गीला-डीएसआर में पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली (Puddled) मृदा पर बोना शामिल है।
  • एरोबिक गीला-डीएसआर: जब पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली मृदा की सतह पर बोया जाता है, तो बीज का वातावरण ज्यादातर वायवीय एवं एरोबिक (Aerobic) होता है।
  • एनारोबिक गीला-डीएसआर: जब पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली मृदा में गहराई में बोया जाता है, तो बीज का वातावरण ज्यादातर अवायवीय (Anaerobic) होता है।
  • इन दोनों (एरोबिक और एनारोबिक) गीला-डीएसआर विधियों के तहत, बीजों को या तो प्रसारित (Broadcast) किया जा सकता है या ड्रम सीडर 81 या अवायवीय सीडर के साथ फरों ओपनर (Furrow Opener) का उपयोग करके बोया जा सकता है।

🔍 यह विधि पारंपरिक रोपाई की तुलना में कम श्रम और समय लेती है, लेकिन मृदा की नमी और तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी होता है।

एरोबिक गीला-डीएसआर धान विधि की पूरी जानकारी (Aerobic Rice Farming):
  • सिंचित और वर्षा जल की कमी को देखते हुए, एरोबिक धान की संभावनाएं देश के विभिन्न धान उगाने वाले क्षेत्रों में बढ़ती जा रही हैं।
  • उपयुक्त किस्म का चयन एवं उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाकर धान की सीधी बुआई से कठिन परिस्थितियों में भी अधिक उत्पादकता एवं लाभ कमाया जा सकता है।
  • इस विधि में अधिक उपज देने वाली किस्मों को लेवरहित (unpuddled) या अनपडल्ड दशा में देसी हल या सीड ड्रिल अथवा पैडीड्रम सीडर से सीधे खेत में बुआई करते हैं।
  • इस विधि से धान की बुआई का उपयुक्त समय जून माह ही है
  • इस विधि में 25-30 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर को 25 सें.मी.×10 सें.मी. की दूरी पर, खेत में पलेवा कर सीधी बुआई करते हैं।
  • एरोबिक धान के लिए 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश के साथ 25-30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट की संस्तुति की जाती है।

डीएसआर तकनीक धान की खेती को अधिक टिकाऊ, लागत प्रभावी और जल-कुशल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


धन्यवाद

Scroll to Top