लौकी की वैज्ञानिक खेती
लौकी ककड़ी परिवार की फसल है, जिसकी खेती पूरे वर्ष की जा सकती है। यह जलोढ़ एवं काली मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें पी.एच. 5.8 से 6.8 हो, उसमें इसकी पैदावार सबसे अच्छी होती है। लौकी की खेती मानसून (जुलाई–अगस्त) और गर्मी (जनवरी–फरवरी) दोनों मौसमों में की जाती है। इसके अलावा यह फसल पहाड़ी इलाकों से लेकर दक्षिण भारत तक बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।

लौकी की खेती
जलवायु व मौसम
लौकी की अच्छी उपज के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त रहती है। बीज अंकुरण के लिए 30–33 डिग्री सेंटीग्रेड तथा पौधे के विकास हेतु 32–38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उत्तम माना जाता है।
खेत की तैयारी
खेती के लिए पहले जुताई कर खेत को समतल किया जाता है। इसके बाद 2–3 जुताइयाँ कल्टीवेटर से करनी चाहिए। खेत तैयार करते समय गोबर की खाद का प्रयोग करना लाभकारी होता है। साथ ही क्यारियों के बीच जल निकासी हेतु नालियाँ बनानी चाहिए।
खाद व उर्वरक
1 हेक्टेयर खेत में 7–8 ट्राली गोबर की खाद डालनी चाहिए। जैविक खेती में यह सबसे उत्तम मानी जाती है। रासायनिक उर्वरकों में 2 बोरी डीएपी और 5 बोरी पोटाश का प्रयोग किया जा सकता है।
बीज चयन व बुवाई
बीजों का चयन खेती का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। अच्छे अंकुरण के लिए हाइब्रिड या प्रमाणित बीजों का प्रयोग करना चाहिए। बीज बुवाई से पहले उनका शोधन करना जरूरी है। बुवाई के लिए क्यारियों में गड्ढे बनाकर प्रत्येक गड्ढे में 3–4 बीज बोने चाहिए।
किस्में
लौकी की प्रमुख किस्में हैं – अरको बहार, पूसा समर प्रोलिफिक लॉन्ग, पूसा नवीन, पूसा मेघदूत, पंजाब लॉन्ग, काशी बहार, काशी गंगा। इन किस्मों से अच्छी पैदावार मिलती है।
उत्पादन व उपयोग
लौकी से लगभग 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह एक स्वास्थ्यवर्धक सब्जी है जिसका उपयोग रायता, कोफ्ता, हलवा, खीर आदि में किया जाता है। इसके अलावा यह कब्ज दूर करने, पेट साफ करने, खांसी व बलगम में लाभकारी है। लौकी का जूस कैंसर रोगियों को भी दिया जाता है।