अप्रैल (चैत्र-बैशाख) का महीना भारत में कृषि के लिए एक व्यस्त और महत्वपूर्ण समय होता है, क्योंकि यह मौसम परिवर्तन का दौर होता है। यह गर्मियों की शुरुआत है, और खरीफ फसलों की तैयारी, रबी फसलों की कटाई, और ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई का समय होता है।
अप्रैल (चैत्र-बैशाख) के प्रमुख कृषि कार्य (Agricultural work in April):

फसल उत्पादन (Crop Production):
गेहूँ (Wheat)
- गेहूं की फसल इस महीने में पककर तैयार हो जाती है। जब दाने सुनहरे सख्त होने लगें तथा दानों में 18-20 प्रतिशत नमी हो, कटाई की सही अवस्था होती है। सुबह का समय कटाई के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। अगर कटाई हाथ से की जाती है, तो फसल के बंडलों को 3-4 दिनों तक खेत में छोड़ देना चाहिए।
- फसल के अधिक पकने पर कुछ प्रजातियों में दाने झड़ने लगते हैं अथवा काटने में देरी करने से चिड़ियों तथा चूहों से भी नुकसान हो सकता है। पकने की अवस्था का अनुमान किसान अपने अनुभव के आधार पर लगा सकते हैं। अप्रैल के अंत तक प्रायः सभी किस्मों को काट लेना चाहिए।
- अनाज के भंडारण के पूर्व कोठियों तथा कमरों को साफ कर लें और दीवारों एवं फर्श पर मैलाथियान 50 प्रतिशत के घोल को 3.0 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़कें। अनाज को बुखारी, कोठियों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फॉस्फाइड 3.0 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।
जौ (Barley)
- जौ की कटाई व मड़ाई पुरी कर लें।
चना (Gram), मटर (Pea), मसूर (Lentil)
- दलहनी फसलों जैसे-चना, मटर, मसूर, खेसारी आदि की पत्तियां पीली या भूरी पड़ जाएं एवं फलियां और फली के अंदर दाना पीला पड़ जाए. तो समझ खेती लें कि फसल पकने वाली है।
- दलहनी फसलें मार्च के अंतिम सप्ताह या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। जब तक फसल या पौधे में नमी हो, तब तक कटाई नहीं करनी चाहिए। कटाई के समय दाने में नमी की मात्रा 15 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। पके हुए दाने में नमी की मात्रा का पता बीज को दांतों से चबाकर भी लगाया जा सकता है। दांतों से बीज दबाकर तोड़ने पर कट की आवाज आए, तो समझ लें कि फसल पक गई है।
- फसल को कटाई के बाद धूप में सूखाएं, ताकि वानस्पतिक भाग फलियों एवं दाने में नमी कम हो सके। खलिहान में 3-4 दिनों तक धूप में रखने के बाद जांच लें कि दाने में नमी की मात्रा 10-12 प्रतिशत से कम हो।
- भंडारण पूर्व दानों को साफ कर 4-5 दिनों तक सुखाते हैं। इससे दानों में नमी की मात्रा 10-12 प्रतिशत तक सुनिश्चित हो जाती है। भंडारण करते समय कीटों से बचाने के लिए एल्युमिनियम फॉस्फाइड की 3 गोलियां प्रति मीट्रिक टन की दर से प्रयोग करें।
ग्रीष्मकालीन मूंगफली (Summer Peanuts)
- भूमिः मूंगफली की खेती के लिए दोमट, बलुई, बलुई दोमट या हल्की दोमट मृदा अच्छी रहती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुआई आलू, मटर, सब्जी मटर तथा राई की कटाई के बाद खाली खेतों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
- किस्मों का चयनः ग्रीष्मकालीन मूंगफली की उन्नत प्रजातियां जैसे-अवतार (आईसीजीवी-93468), टीजी-26, टीजी-37, डी एच-86 एवं एम 522 किस्में सिंचित अवस्था में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद बोयी जा सकती है। ये अगस्त या सितम्बर के अन्त तक तैयार हो जाती हैं।
- बीजोपचारः 38 कि.ग्रा. स्वस्थ दाना बीज को 200 ग्राम थीरम से उपचारित करके फिर राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें। इन बीजों को छाया में 2-3 घन्टे सुखाकर बुआई सुबह के समय या शाम को 4 बजे के बाद करें। तेज धूप में कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है।
- बुआई: बीजों को लाईनों में 1 फुट तथा पौधों में 1 इंच की दूरी पर बीज 2 इंच से गहरा प्लांटर की मदद से बो सकते है।
- पोषक तत्व प्रबंधनः खेत को अच्छी तरह से जुताई करें और आवश्यकतानुसार उर्वरक डालें।
बेबीकॉर्न (Babycorn)
- बेबीकॉर्न के बिल्कुल कच्चे भुट्ट बिक जाते हैं, जो होटलों में सब्जी, सूप, सलाद एवं अचार बनाने के काम आते हैं। यह फसल 50-60 दिनों में तैयार हो जाती है और निर्यात भी की जाती है। बेबीकॉर्न की संकर प्रकाश एवं कम्पोजिट केसरी किस्मों के 16. कि.ग्रा. बीज को 1 फूट पंक्तियों में और 8 इंच पौधों में दूरी रखकर बोया जाता है।
गन्ना (Sugarcane)
शरदकालीन/बसन्तकालीन गन्ना
- गन्ने में आवश्यकतानुसार फसल की मांग के अनुरूप सिंचाई एवं गुड़ाई करते रहें।
- बसंतकालीन गन्ना जो फरवरी में लगा है, में एक-तिहाई नाइट्रोजन की दूसरी किस्त । बोरा यूरिया अप्रैल में डाल दें एवं खेत में खाली स्थानों को पोरिया या नर्सरी में उगाएं गए पौधों से भर दें।
- गन्ने की दो पंक्तियों के बीच में मूंग की बुआई इस समय कर सकते हैं।
ग्रीष्मकालीन गन्ना
- ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुआई उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं उत्तराखंड में अप्रैल एवं मई में की जाती है। गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल में भी गन्ना लगा सकते हैं। इसके लिए उपयुक्त किस्में सी.ओ.एच.-35 एवं सी.ओ.एच.-37 हैं।
- गन्ने की बुआई से पूर्व खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लें। गन्ने की फसल खेत में 2-3 वर्षों तक रहती है। इस मौसम की गन्ने की फसल के लिए खेत को जुताई करके भलीभांति तैयार कर लें। बुआई के लिए लगभग 35,000-40,000 गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों (लगभग 5-6 टन) की आवश्यकता होती है। 75-90 सें.मी. के पक्ति से पंक्ति की दूरी पर 10-15 सें.मी. गहरा कूड़ डेल्टा हल से बनाकर बोया जाता है।
- गन्ने में 150-180 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन, 80 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर फॉस्फोरस, 60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पोटाश प्रयोग करना लाभप्रद होता है।
- जिन खेतों से गन्ने का बीज लेना है, उन खेतों में बीज लेने से 5-7 दिनों पूर्व सिंचाई करें।
- शीघ्र एवं कम अवधि में पकने वाली फसलों जैसे-मूंग, उड़द एवं लोबिया को गन्ने की दो पंक्तियों के बीच में बुआई कर सकते हैं
सूरजमुखी (Sunflower)
- सूरजमुखी की फसल के उचित पोषण और कीट नियंत्रण पर ध्यान दें।
- सूरजमुखी में हरे फुदके पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 250 मिलीलीटर का छिड़काव करें।
मूंग एवं उड़द (Moong and Urad)
- उर्द की बोआई का समय अब निकल गया है। परन्तु मूँग की बोआई 10 अप्रैल तक कर सकते हैं।
- 10-15 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।
- उर्द/मूँग की फसल में पत्ती खाने वाले कीटों से बचाव के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें।
चारा वाली फसलें (Fodder Crops)
- ग्रीष्मकाल में पशुओं के लिए चारे की कमी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में एक आम समस्या है। इसके समाधान के लिए गर्मी के मौसम में अप्रैल में जहां सिंचाई की व्यवस्था है वहां पर हरे चारे की खेती कर सकते हैं। इस समय प्रमुख हरे चारे में मक्का, लोबिया, ज्वार आदि फसलों की उत्तम किस्मों को उगाना चाहिए।
- ज्वारः ज्वार एक पौष्टिक चारा है, जो पशुओं को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। गर्मियों की बुआई के लिए, सबसे अच्छा समय मध्य मार्च से मध्य अप्रैल तक है।
- बरसीमः बरसीम में 10-12 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई एवं कटाई करते रहें। यदि बरसीम की फसल बीज उत्पादन के लिए उगाई गयी है तो मार्च महीने के बाद कटाई नहीं करनी चाहिए। फूल आ जाने पर बीज वाली फसल में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। यानी अप्रैल के प्रथम सप्ताह के बाद सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 10-15 मई तक फसल पककर तैयार हो जाती है।
सब्जियों की खेती (Vegetable Farming):
- प्याज एवं लहसुनः तैयार हो चुके प्याज एवं लहसुन की खुदाई माह के अन्त में करें। खोदने के बाद फसल को तीन दिनों तक खेत में ही पड़ा रहने दें। तीन दिनों बाद प्याज एवं लहसुन को छाया में सुखाएं और फिर सही तरीके से भंडारण करें। खुदाई के 10 से 12 दिनों पहले सिंचाई बंद कर दें।
- सूरन, अदरक एवं हल्दीः इन फसलों की बुआई इस माह में प्रारम्भ कर दें। सूरन की बुआई के लिए 75 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। गजेन्द्र और श्रीपद्म इसकी लोकप्रिय किस्में हैं। अदरक की बुआई के लिए 18 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर 30-40 सें.मी. फासले पर क्यारी बनाकर 20 सें.मी. पौधे से पौधे को दूरी पर करें एवं हल्दी के लिए 15-20 क्विंटल बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बुआई से पूर्व हल्दी एवं अदरक के बीजों को 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित कर लें। अदरक एवं हल्दी की बुआई करने के बाद खेत को सूखी पुआल अथवा सूखी पत्तियों की पलवार से ढक दें। इससे खेत में खरपतवार का जमाव नहीं होता है।
- हरी मिर्च में रोपाई के 25-30 दिनों बाद प्रति हैक्टर 35-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की पहली टॉप ड्रेसिंग एवं रोपाई के 45 दिनों बाद इतनी ही यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें। फसल की निराई-गुड़ाई करें तथा उचित समय पर सिंचाई कर दें।
- टमाटर की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं गुड़ाई करते रहें। पत्ती, तना एवं फलबंधक कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियॉन 50 ई.सी. की 1-1.25 लीटर दवा 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रहे कि फलों की तुड़ाई छिड़काव के 4-5 दिनों बाद करें।
- बैगनः वर्षाकालीन बैंगन की फसल के लिए नर्सरी में बौजों की बुआई इस माह में कर सकते हैं। लो टनल पॉलीहाउस से बैंगन की अच्छी गुणवत्ता को पौध तैयार कर सकते हैं।
फलों की खेती (Fruit Farming):
- आम के फलों को गिरने से बचाने के लिए यूरिया के 2 प्रतिशत घोल से पेड पर छिडकाव करें। मिलीबग नई कोपलों, फूलों एवं फलों का रस चूसकर काफी नुकसान करती है। नियंत्रण के लिए 700 मि.ली. मिथाइल पैराथियॉन 70 ई.सी. को 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़के तथा नीचे गिरी या पेड़ों पर चढ़ रहे कीटों को इकट्ठा करके जला दें और घास साफ रखें। यदि तेला (हॉपर) फूल पर नजर आये तो 700 मि.ली. मैलाथियॉन 70 ई.सी. 700 लीटर पानी में छिड़कें।
- अप्रैल में पपीते की नर्सरी तैयार करने के लिए उपयुक्त है। पपीते के एक हेक्टर क्षेत्र के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु 70 वर्ग मीटर में 250-300 ग्राम बीज को लगाएं।
- अमरूद के फूलों को तोड़ दें, ताकि फल मक्खी फूलों में अण्डे न दें पाये, जिससे फल सड़ जाते हैं।
- नीबू में एक वर्ष के पौधे के लिए दो कि.ग्रा. कम्पोस्ट और 70 ग्राम यूरिया प्रति पौधा दें।
- लीची के बागों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। 100 ग्राम यूरिया प्रति पेड़ प्रति वर्ष आयु की दर से डालें। लीची में फलछेदक की रोकथाम के लिए डाइक्लोरोफॉस 5 मि.ली. (70 ई. सी. न्यूवान) 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- केले में प्रति पौधा 25 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फॉस्फोरस और 100 ग्राम पोटाश मृदा में गुड़ाई कर मिला दें। केले के पौधों में चारों ओर से निकलते हुए सकर्स को निकाल दे।
- आम, अमरूद, पपीता, अंगूर, नीबू एवं बेर उत्पादन में सिंचाई पर ध्यान देना अतिआवश्यक है। जब पौधे नये हों जाम गर्मियों में इन फसलों में 7-8 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए, लेकिन बड़े होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
फूल और सुगंधित पौधे (Flowers and Fragrant Plants):
- मार्च-अप्रैल बागवानी के लिए आदर्श समय है। गुलाब में अभी भी कलियां निकल सकती हैं और कुछ मौसमी फूलों में इस महीने के अंत में बीज बनेंगे, इसलिए कटाई शुरू की जा सकती है।
- ग्लैडियोलसः ग्लैडियोलस के कन्दों की खुदाई से 15 दिनों पूर्व सिंचाई बन्द कर दें और स्पाइक काटने के 40-45 दिनों बाद घनकन्दों (कार्म) की खुदाई करें। कॉर्म को सड़न रोग से बचाने हेतु 0.2 प्रतिशत मैन्कोजेब पाउडर से उपचारित करके शीतगृह में भण्डारण कर दें।
- गुलाबः यह गुलाब के पौधे लगाने और काटने का सबसे अच्छा समय है। मैदानी इलाकों में मुरझाए फूलों और पत्तियों को काटते रहें। पौधों को 5-6 दिनों के अंतराल पर पानी दें। पाउडरी मिल्ड्यू की रोकथाम के लिए सल्फर फफूंदनाशकों का छिड़काव करें या धूल से साफ करें। किसी भी कीट के प्रकोप की नियमित निगरानी करें और महीने में एक बार कीटनाशक का छिड़काव करें। निराई-गुड़ाई और गुड़ाई नियमित रूप से करनी चाहिए।
- रजनीगंधाः रजनीगंधा में एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई एवं दो सप्ताह के अंतराल पर गुड़ाई करें।
- गेंदा: पौधे अप्रैल शुरू में लगा सकते है ताकि गर्मियों में फूल मिल सकें। गेंदे की फसल में एफिड, कैटरपिलर तथा माइट्स का प्रकोप होता है, जिसके निराकरण करने के लिए 0.2 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स या 0.25 प्रतिशत कंराथेन या 0.2 प्रतिशत रोगोर का छिड़काव प्रत्येक सप्ताह बाद कम से कम दो बार करना चाहिए।
- गर्मी के फूलों जैसे जीनिया, पोर्चुलाका व कोचिया के पौधों की सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई कर दें।
- मेंथा में 10-12 दिन के अन्तर पर सिंचाई तथा तेल निकालने हेतु प्रथम कटाई करें।
पशुपालन/दुग्ध विकास (Animal Husbandry/Dairy Development):
- पशुओं में खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव के लिए टीका लगवायें।
- पशुओं के घाव में कीड़े पड़ने पर सबसे पहले घाव के आस पास बालों को काट कर साफ़ किया जाता है फिर जहाँ तक हो सके कीड़े को निकाल कर केरोसिन तेल में डुबो कर मार देना चाहिए | घाव को साफ़ करने के बाद उसमें तारपीन के तेल से भिंगोया हुआ कपड़ा घाव के अंदर तक प्रवेश कराकर 8-12 घंटे पट्टी बांधकर छोड़ देना चाहिए | जब तक सारे कीड़े नहीं मर जाते घाव ठीक नहीं होता है |
- पशुओं के लिए बदलते हुए मौसम के अनुसार सुपाच्य तथा पौष्टिक चारा की व्यवस्था करें।
मुर्गी पालन (Poultry Farming):
- जो मुर्गियाँ कम अण्डे दे रही हों, उनकी छटनी कर दें।
- मुर्गियों में डिवर्मिंग (पेट के कीड़ों के लिए दवा) करें।
- बदलते मौसम में मुर्गियों को प्रकाश, स्वच्छ जल तथा सन्तुलित आहार की व्यवस्था करवायें।
- आर.डी. तथा फाउल पाक्स का टीकाकरण समय से करायें।