अगस्त (श्रावण-भाद्रपद) माह के प्रमुख कृषि कार्य (Agricultural work in August Month):
अगस्त, जिसे श्रावण-भाद्रपद माह के रूप में भी जाना जाता है, खरीफ फसलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भारत की आधी से अधिक खाद्यान्न उत्पादन इन्हीं खरीफ फसलों, जैसे धान, मक्का, ज्वार और बाजरा, पर निर्भर करता है, जिनकी सफलता मानसून के आगमन पर टिकी होती है। इसलिए, सघन खेती के साथ-साथ वर्षा पर आधारित (बारानी) खेती का उचित प्रबंधन करना आवश्यक है। इसके तहत, कम सिंचाई वाली उन्नत प्रजातियों का चयन, उचित समय पर बुआई, फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, और जल का दक्ष उपयोग, जैसे बूंद-बूंद सिंचाई, महत्वपूर्ण हैं। वाष्पीकरण को कम करने के लिए पलवार (mulching) का प्रयोग भी वर्षा आधारित क्षेत्रों में फसल उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होते हैं।
इस माह के कृषि कार्यों में कई महत्वपूर्ण फसलों के लिए आधुनिक तकनीकों और उन्नत विधियों को शामिल किया गया है। खरीफ फसलों जैसे अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी, धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास और गन्ना के साथ-साथ विभिन्न चारा फसलें और सब्जी फसलें, जैसे कद्दूवर्गीय सब्जियां, भिंडी, बैंगन, मिर्च, परवल, टमाटर, हरी प्याज, गाजर, बेबीकॉर्न, मूली, फूलगोभी और बंदगोभी के उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा, यह समय बागवानी फसलों जैसे अमरूद, आम, कटहल, आंवला, पपीता, केला, नींबू, बेर, जामुन और लीची, तथा पुष्प फसलों जैसे गुलाब, रजनीगंधा और ग्लैडियोलस के लिए भी अनुकूल होता है। इन खड़ी फसलों में सस्य प्रबंधन से उत्तम बढ़वार और बेहतर उपज सुनिश्चित की जाती है। इस प्रकार, अगस्त माह में किसान इन सभी कार्यों को सही ढंग से करके अपनी लागत को कम कर सकते हैं और अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

फसल उत्पादन (Crop Production):
धान की फसल (Paddy Crop):
- धान की फसल के लिए सिंचाई की पर्याप्त सुविधा आवश्यक है। इसकी खेती में जल प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कार्य है।
- धान की फसल की कुछ क्रांतिक अवस्थाओं जैसे- कल्ले फूटते समय, फूल निकलते समय (यह अवस्था पानी के लिए सबसे संवेदनशील है), बाली निकलते समय तथा दाना भरते समय में खेत में 5-6 सें.मी. पानी खड़ा रहना अत्यंत लाभकारी होता है।
- धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है। इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के 1 दिन बाद 5-7 सें.मी. सिंचाई करना उपयुक्त होता है। खेत में पानी रहने से फॉस्फोरस, मैंगनीज तथा आयरन जैसे पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम निकलते हैं।
- यह ध्यान देने योग्य है कि कल्ले निकलते समय अधिक देर तक 5 सें.मी. से अधिक पानी धान के खेत में भरा रहना हानिकारक होता है। अतः, जिन क्षेत्रों में पानी भरा रहता हो, वहाँ जल निकासी का प्रबंध करें।
- कुछ विशेष परिस्थितियों, जैसे अधिक वर्षा या देर से वर्षा के आगमन के कारण, समय पर रोपाई संभव नहीं हो पाती। ऐसी दशा में निम्नलिखित सस्य क्रियाओं को अपनाकर पुरानी पौध से भी अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है:
- रोपाई की दूरी घटा दें: 20 सें.मी.×10 सें.मी. एवं 15 सें.मी.×10 सें.मी. की दूरी रखें, जिससे प्रति इकाई पौधों की संख्या बढ़ जाए।
- अधिक पौधे रोपें: प्रति स्थान पर 3-5 पौधों की रोपाई करें।
- धान की देर से पकने वाली प्रजातियों की रोपाई इस माह बंद कर दें। हालांकि, जिन जगहों पर पौधे मर गए हों, वहाँ उसी प्रजाति के नए पौधे दोबारा रोप सकते हैं। इसके साथ ही, खेत में पानी का स्तर 3-4 सें.मी. बनाए रखें।
- पोषक तत्व प्रबंधन:
- यूरिया (नाइट्रोजन):
- पहली टॉप ड्रेसिंग: रोपाई के 25-30 दिनों बाद कल्ले निकलते समय, अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में 65 कि.ग्रा. यूरिया (30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन) और सुगंधित प्रजातियों में 33 कि.ग्रा. यूरिया (15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन) प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।
- दूसरी एवं अंतिम टॉप ड्रेसिंग: नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा की दूसरी एवं अंतिम टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 50-55 दिनों बाद पुष्पण के समय करनी चाहिए।
- जिंक की कमी: यदि खेत में जिंक की कमी के लक्षण दिखें, तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट को 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ मिलाकर 15-20 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें।
- लौह तत्व की कमी (सीधी बुआई में): जिन क्षेत्रों में धान की सीधी बुआई की जाती है, और पौधों में लौह तत्व (आयरन) की कमी दिखाई दे, तो 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन छिड़काव करें।
- यूरिया (नाइट्रोजन):
- खरपतवार नियंत्रण:
- समय: फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवारों का नियंत्रण रोपण के बाद 20 से 40 दिनों में कर लेना चाहिए।
- जल प्रबंधन: धान के खेतों में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए जल प्रबंधन एक प्रभावी और उन्नत विधि रही है। पानी भरे हुए खेत में धान के रोपण से खरपतवार की वृद्धि कम होती है, क्योंकि जल भराव के कारण खरपतवारों की जड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है।
- रासायनिक नियंत्रण (शाकनाशी): इसमें एक सारणी का उल्लेख है, जिसमें धान की फसल के लिए शाकनाशियों (herbicides) की सिफारिशें दी गई हैं। ये रासायनिक उपाय जल प्रबंधन के साथ मिलकर प्रभावी खरपतवार नियंत्रण में सहायक होते हैं।
- रोग प्रबंधनः धान की फसल में रोग प्रबंधन की पूरी जानकारी।
- कीट प्रबंधन: धान की फसल में कीट प्रबंधन की पूरी जानकारी।
धान की वैज्ञानिक खेती की विस्तृत जानकारी
धान की सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice – DSR) तकनीक की पूरी जानकारी।
मक्का (Maize):
- टॉप ड्रेसिंग: मक्का बुआई के 40-45 दिनों बाद, नर मंजरी (Tasseling) निकलते समय 40 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से दूसरी और अन्तिम टॉप ड्रेसिंग करें। इससे पौधों की वृद्धि व दानों की गुणवत्ता बढ़ती है।
- जल प्रबंधन:
- मक्का में बाली बनने के समय खेत में पर्याप्त नमी रहना जरूरी है; अन्यथा उपज पर 50% तक असर पड़ सकता है।
- यदि बारिश कम हो, तो घुटने तक ऊँचाई, नर मंजरी निकलने एवं दाना बनने की क्रांतिक अवस्था पर 1-2 बार सिंचाई करें।
- साथ ही, जल निकासी का समुचित प्रबंध करें। Especially मेड़ों पर बुवाई की गई फसल में, खेत के छोर पर निकासी की उचित सुविधा रखें ताकि जलभराव न हो।
- खरपतवार प्रबंधन:
- खरीफ मौसम में खरपतवार का दबाव अधिक रहता है, जिससे 50-60% तक उपज में गिरावट आ सकती है।
- मक्का के खेत को प्रारंभिक 45 दिन खरपतवार मुक्त रखें।
- 2-3 बार निराई-गुड़ाई (खुरपी, लैंड हो या अन्य यंत्र) करने से न केवल खरपतवार नियंत्रण होता है, बल्कि मिट्टी की पपड़ी टूटती है और जड़ों में वायु संचार अच्छा होता है।
- रासायनिक नियंत्रण: बुआई के बाद, लेकिन पौध जमने से पहले, एट्राजिन 1-1.5 किग्रा/हे. का छिड़काव करें।
- पौध संरक्षण:
- प्रमुख रोग: लीफ ब्लाइट (Medis tersicium), डाउनी मिल्ड्यू, जीवाणुजनित तना विगलन, पाइथियम वृंत गलन, पुष्पणोत्तर वृंत गलन।
- इनसे बचाव हेतु:
- रोगरोधी प्रजातियाँ चुनें और समय पर बुवाई करें।
- लीफ ब्लाइट की रोकथाम के लिए 2.5 किग्रा/हे. जिनेब को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10-15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव करें।
- पत्ती लपेटक कीट के लिए:
- क्लोरोपायरीफॉस 1.0 मि.ली./लीटर पानी या
- इमामेक्टिन बेंजोएट 1.0 मि.ली./4 लीटर पानी का छिड़काव करें।
- नोट: समय पर उपरोक्त प्रबंधन अपनाकर आप मक्का की उपज और गुणवत्ता दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं। सभी रसायनों एवं उर्वरकों का उपयोग अनुशंसित मात्रा और सुरक्षा निर्देशों के अनुसार करें, और स्थानीय कृषि विशेषज्ञ/वैज्ञानिक से मार्गदर्शन लेते रहें।
बाजरा (Pearl Millet)
- बुआई का समय: यदि बुआई में देर हो गई है, तो इसे अगस्त माह के प्रथम पखवाड़े (पहले 15 दिन) तक पूरी कर लें।
- विरलीकरण एवं पोषक तत्व प्रबंधन:
- विरलीकरण (Thinning): बुआई के 15-20 दिनों बाद कमजोर पौधों को निकालकर विरलीकरण करें, जिससे पौधों के बीच की दूरी 10-15 सें.मी. हो जाए।
- टॉप ड्रेसिंग: संकर/उन्नत प्रजातियों में 85-108 कि.ग्रा. यूरिया की टॉप ड्रेसिंग प्रति हैक्टर की दर से करें।
- जल प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण:
- जल प्रबंधन: बाजरे की फसल में फूल आने की स्थिति में सिंचाई करना सबसे लाभप्रद होता है। यदि वर्षा की कमी हो, तो पौधों में फुटान होते समय, बालियाँ निकलते समय तथा दाना बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। इस दौरान 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता हो सकती है।
- जल निकासी: बाजरा जल भराव (जल प्लावन) से भी प्रभावित होता है, इसलिए यह ध्यान रखें कि खेत में पानी इकट्ठा न होने पाए।
- रासायनिक खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार नियंत्रण के लिए 1.0 कि.ग्रा. एट्राजिन प्रति हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के बाद, लेकिन अंकुरण से पूर्व छिड़काव करें।
- यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण: इसके साथ-साथ बुआई के 20-40 दिनों के अंदर एक बार कसोले या खुरपी से खरपतवार निकाल दें।
- पौध संरक्षण (कीट प्रबंधन):
- तनाछेदक कीट से बचाव:
- कार्बेरिल 2.5 मि.ली./लीटर दवा का घोल 500 लीटर पानी में बनाकर छिड़काव करें।
- लिन्डेन 6% ग्रेन्यूल या कार्बोफ्यूरॉन 3% ग्रेन्यूल 20 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
- 8 ट्राइकोकार्ड प्रति हैक्टर लगाने से भी इसकी रोकथाम की जा सकती है।
- मंडुआ, झंगोरा, रामदाना, कूट्टू की फसल: इन फसलों में भी तनाछेदक कीट का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. की 20 मि.ली. दवा प्रति नाली की दर से 15-20 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- तनाछेदक कीट से बचाव:
ज्वार (Sorghum)
- विरलीकरण एवं पोषक तत्व प्रबंधन:
- विरलीकरण (Thinning): ज्वार की फसल में विरलीकरण करके पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सें.मी. कर दें।
- टॉप ड्रेसिंग: विरलीकरण के बाद, उन्नत/संकर प्रजातियों में 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से बुआई के 30-35 दिनों बाद खड़ी फसल में छिड़क दें।
- असिंचित दशा में: यदि सिंचाई की सुविधा नहीं है, तो 2 प्रतिशत यूरिया का घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना अत्यंत लाभकारी होता है।
- जल प्रबंधन:
- ज्वार की फसल में निम्नलिखित क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई करना आवश्यक होता है: 1. प्रारंभिक पौध अवस्था 2. पौधों की वृद्धि 3. बाली निकलने से पहले 4. बाली निकलते समय 5. बालियों में दाना भरते समय।
- खरपतवार प्रबंधन:
- यांत्रिक नियंत्रण: ज्वार की अच्छी उपज लेने के लिए बुआई के 3 सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई करें। इससे खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ भूमि में वायु का संचार होता है और नमी भी सुरक्षित रहती है।
- रासायनिक नियंत्रण: यदि किसी कारणवश निराई-गुड़ाई संभव न हो, तो बुआई के तुरंत बाद एट्राजिन नामक खरपतवारनाशी की 0.75-1.0 कि.ग्रा. मात्रा 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
- पौध संरक्षण (कीट प्रबंधन):
- तना मक्खी (Stem Fly): यह ज्वार का एक प्रमुख कीट है। इसका प्रकोप पौधों के जमाव के लगभग 7 से 30 दिनों तक होता है। कीट की इल्लियाँ उगते हुए पौधों की गोफ को काट देती हैं, जिससे पौधे सूख जाते हैं।
- नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी को बुआई के समय 20 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से कूड़ों में डालना चाहिए।
मूंगफली (Peanuts)
- जल प्रबंधन: मूंगफली की फसल में बुआई के 35-40 दिनों बाद फूलों से पेगिंग (पौधे का जमीन में धँसना) बनती है। इस समय पानी की कमी होने पर उत्पादकता काफी कम हो जाती है। इसलिए, यदि वर्षा नहीं होती है तो सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए।
- पोषक तत्व प्रबंधन:
- बोरॉन की कमी: यदि सूक्ष्म पोषक तत्व बोरॉन की कमी दिखे, तो 0.2 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का छिड़काव करें।
- जिंक की कमी: जिंक की कमी होने पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.25 प्रतिशत चूने का घोल बनाकर छिड़काव करें।
- पैदावार बढ़ाने के लिए: मूंगफली की फसल बोने के 40 दिनों बाद, 0.7 ग्राम इंडोल एसिटिक एसिड को 7 मि.ली. एल्कोहल में घोलकर 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। इसके एक सप्ताह बाद, 6 मि.ली. एथरेल (40%) को 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़कने से मूंगफली की पैदावार 17-27 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
- पौध संरक्षण:
- कॉलर रॉट (Collar Rot): इस रोग से फसल को बचाने के लिए फफूंदनाशक कार्बण्डाजिम या मैंकोजेब का प्रयोग करना चाहिए।
- टिक्का रोग (Tikka Disease): मूंगफली के टिक्का रोग की रोकथाम के लिए, खड़ी फसल पर 2.0 कि.ग्रा. जिंक मैग्नीज कार्बामेट या 2.5 कि.ग्रा. जिनेब (75%) दवा प्रति हैक्टर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें
गन्ना (Sugarcane)
- जल प्रबंधन और गन्ने को सहारा देना:
- सिंचाई: यदि वर्षा नहीं हो रही है, तो 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
- मिट्टी चढ़ाना: हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में, फसल को गिरने से बचाने के लिए वर्षा शुरू होते ही पौधे की जड़ों पर अच्छी तरह मिट्टी चढ़ा दें। इससे अनावश्यक कल्ले निकलने भी रुकते हैं।
- सहारा देना: अगस्त में गन्ने को बांधें, ताकि तेज़ हवा या बारिश से फसल गिरे नहीं। फसल गिरने से उपज और गन्ने में शक्कर की मात्रा दोनों कम हो जाती हैं।
- खरपतवार नियंत्रण:
- हाथ से निराई: इस समय आइपोमिया प्रजाति (बेल) जैसे खरपतवार बहुत बढ़ते हैं। इन्हें खेत से उखाड़कर फेंक दें।
- रासायनिक नियंत्रण: यदि खरपतवार छोटे पौधे के रूप में दिखाई दें, तो मेट सल्फ्यूरॉन मिथाइल 4 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- पौध संरक्षण: अगस्त में पौध संरक्षण पर पूरा ध्यान दें, क्योंकि इस माह कई कीट और रोग लगने का खतरा रहता है।
- पायरिला कीट:
- क्षति: यह कीट जुलाई से सितंबर तक सक्रिय रहता है। इसके शिशु और वयस्क, दोनों गन्ने की पत्तियों से रस चूसकर नुकसान पहुँचाते हैं।
- नियंत्रण:
- कीट के अंड समूहों को निकालकर नष्ट कर दें।
- वातावरण में पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका को संरक्षण प्रदान करें। इन परजीवियों की पर्याप्त उपस्थिति से कीटों की संख्या अपने आप नियंत्रित हो जाती है।
- रासायनिक नियंत्रण: क्विनालफॉस 25 ई.सी. 2.0 लीटर, या डाइक्लोरोवास 76 ई.सी. 375 मि.ली., या क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हैक्टर को 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- गुरदासपुर बेधक (Gurdaspur Borer):
- क्षति: यह कीट जुलाई से अक्टूबर तक नुकसान पहुँचाता है। इसकी सुंडी ऊपर की दूसरी या तीसरी पोरी से गन्ने में घुसकर अंदर से खोखला कर देती है।
- नियंत्रण:
- गन्ने की सूखी पत्तियों को काटकर अलग कर दें।
- ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 10 कार्ड प्रति हैक्टर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर शाम को इस्तेमाल करें।
- जल निकास की व्यवस्था करें।
- मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 2.0 लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 1-1.5 लीटर प्रति हैक्टर को 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- कार्बोफ्यूरॉन 3% सी.जी. 30 कि.ग्रा. या फोरेट 10% सी.जी. 30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
- जड़बेधक (रूट बोरर) कीट:
- क्षति: इस कीट की सुंडी जमीन से लगे गन्ने के हिस्से में घुसकर छेद करती है और “डेड हार्ट” बनाती है। इन मृत हिस्सों से दुर्गंध नहीं आती और इन्हें आसानी से बाहर नहीं निकाला जा सकता।
- नियंत्रण:
- कीट के अंड समूहों को इकट्ठा करके और प्रभावित तनों को जमीन से काटकर नष्ट कर दें।
- तलहटी वाले खेतों में पेड़ी की फसल नहीं लें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 350 मि.ली., या क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हैक्टर, या फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 कि.ग्रा. की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- पत्ती का लाल धारी रोग (Red Stripe Disease):
- क्षति: इसका प्रकोप जून से सितंबर तक रहता है। गन्ने की पत्तियों पर लाल रंग की धारियां पड़ जाती हैं, जिससे पूरी पत्ती लाल हो जाती है। पत्तियों का क्लोरोफिल नष्ट हो जाता है और बढ़वार रुक जाती है। गन्ने को चीरने पर गूदा मटमैला लाल दिखाई देता है, जिसमें से सिरके जैसी गंध आती है।
- नियंत्रण:
- हमेशा रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का ही प्रयोग करें।
- बीज के लिए ऐसे गन्ने का इस्तेमाल न करें जिसके कटे हुए सिरे या गांठों पर लालिमा दिखे।
- बीज को आर्द्र गर्म वायु उपचार (54° सेल्सियस पर 2.5 घंटे तक) विधि से उपचारित करें।
- पौधशालाओं में जल निकास की समुचित व्यवस्था करें।
- ट्राइकोडर्मा 2.5 कि.ग्रा. को 75 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरिसेन्स 2.5 कि.ग्रा. को 100 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर प्रयोग करें।
- पायरिला कीट:
सूरजमुखी (Sunflower)
- थिनिंग (विरलीकरण) एवं पोषक तत्व प्रबंधन:
- थिनिंग: बुआई के 15-20 दिनों बाद, अवांछित पौधों को निकालकर पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सें.मी. करें।
- पोषक तत्व: बुआई के 25 दिनों बाद, 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से टॉप ड्रेसिंग करें।
- खरपतवार नियंत्रण:
- यांत्रिक नियंत्रण: पहली सिंचाई के बाद (बुआई के 20-25 दिनों बाद) निराई-गुड़ाई करना बहुत ज़रूरी है। बुआई के 40-45 दिनों बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें और साथ ही पौधों पर 15-20 सें.मी. मिट्टी चढ़ा दें।
- रासायनिक नियंत्रण: खरपतवारों के जमाव को रोकने के लिए, पेण्डीमेथिलीन 30 ई.सी. की 3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से बुआई के 2-3 दिनों के भीतर छिड़काव करें।
- जल प्रबंधन:
- पहली सिंचाई: पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिनों बाद हल्की या स्प्रिंक्लर से करनी चाहिए।
- आवश्यकतानुसार सिंचाई: इसके बाद, आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें। कुल मिलाकर, फसल को 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ सकती है।
- क्रांतिक अवस्थाएं: फूल निकलते समय और दाना भरते समय बहुत ही हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
अरहर, मूंग एवं उड़द(Pigeon Pea, Moong and Urad)
- बुआई और उन्नत किस्में:
- खेती की भूमि: मूंग और उड़द के लिए दोमट या हल्की दोमट मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो, सबसे उपयुक्त है।
- बुआई का समय: कम समय में पकने वाली किस्मों की बुआई जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त के तीसरे सप्ताह तक कर देनी चाहिए।
- बुआई की विधि: बुआई हल के पीछे कूड़ में करें। मूंग के लिए कतार से कतार की दूरी 30-35 सें.मी. और उड़द के लिए 30-45 सें.मी. रखें। बुआई के तीन सप्ताह बाद, पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. कर दें।
- उन्नत किस्में:
- मूंग: सम्राट, पीडीएम-54, पीडीएम-11, नरेन्द्र मूंग-1, पंत मूंग 1, पंत मूंग-2, पंत मूंग-3, पंत मूंग-4, पंत मूंग-5, श्वेता।
- उड़द: पंत उड़द-35, पंत उड़द 31, पंत उड़द-19, पंत उड़द-40, नरेन्द्र उड़द-1।
- पोषक तत्व प्रबंधन: अगर मिट्टी की जाँच नहीं करवाई गई है, तो बुआई के समय 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टर की दर से कूड़ों में डालें।
- जल प्रबंधन:
- मूंग, उड़द और अरहर में फूल आने पर मिट्टी में हल्की नमी बनाए रखें। इससे फूल झड़ेंगे नहीं, अधिक फलियाँ लगेंगी और दाने भी मोटे और स्वस्थ होंगे।
- ध्यान रखें कि खेतों में बारिश का पानी खड़ा नहीं होना चाहिए।
- खरपतवार प्रबंधन:
- समय: बुआई के शुरुआती 4-5 सप्ताहों में खरपतवार की समस्या ज़्यादा होती है।
- यांत्रिक नियंत्रण: पहली सिंचाई के बाद निराई करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी में हवा का संचार बढ़ता है, जो मूल ग्रंथियों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए सहायक होता है।
- रासायनिक नियंत्रण: चौड़ी पत्ती और घास वाले खरपतवारों के लिए, बुआई के तुरंत बाद या अंकुरण से पहले पेण्डीमेथिलीन (30 ईसी) 3.30 लीटर, एलाक्लोर 4.0 लीटर, या फ्लूक्लोरोलिन (45 ईसी) 2.20 लीटर को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर देना चाहिए।
- निराई-गुड़ाई: बुआई के 15-20 दिनों के अंदर कसोले से निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट कर दें।
- पौध संरक्षण:
- पीला मोजैक रोग: इसकी रोकथाम के लिए डाइमेथोएट (30 ईसी) 1.0 लीटर या मिथाइल-ओडेमिटोन (25 ईसी) 1.0 लीटर को 600-800 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें। इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर की दर से भी छिड़काव किया जा सकता है।
- अरहर के रोग (उकठा, फाइटोप्थोरा, अंगमारी और पादप बांझ रोग):
- 2.5 मि.ली. डाइकोफॉल को 1.0 लीटर पानी में घोलकर और 1.7 मि.ली. डाइमेथोएट को 1 लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें।
- जिस खेत में उकठा रोग का प्रकोप ज़्यादा हो, वहाँ 3 से 4 वर्ष तक अरहर की फसल न लें।
- अरहर के साथ ज्वार की सहफसल लेने से उकठा रोग का प्रकोप कम होता है।
- बीजोपचार: ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज को उपचारित करना चाहिए।
- फलीछेदक कीट: जब 70% फलियाँ पक जाएँ, तो मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल को 300 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। ज़रूरत पड़ने पर 15 दिनों बाद दोबारा छिड़काव कर सकते हैं।
सोयाबीन (Soybean)
- खरपतवार नियंत्रण: सोयाबीन के खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए आप रासायनिक और यांत्रिक दोनों तरीकों का उपयोग कर सकते हैं:
- रासायनिक विधि: इमाजेथापायर (10 ईसी) 750-1000 मि.ली. को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के 10-20 दिनों बाद छिड़काव करें। या, क्विजालोफॉस-9-टरफ्लूराइल (4.4 ईसी) 750-1000 मि.ली. या फिनॉक्साप्रोन (10 ईसी) 800-1000 मि.ली. को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के 20-25 दिनों बाद छिड़काव करें।
- यांत्रिक विधि: बुआई के 20-25 दिनों के अंदर, कसोले से निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए।
- पौध संरक्षण: सोयाबीन की फसल में कुछ प्रमुख रोग और कीट नुकसान पहुंचाते हैं:
- पीला मोजैक रोग:
- लक्षण: यह वायरस से फैलता है, जिसे सफेद मक्खी फैलाती है। प्रभावित पत्तियों पर पीले और चित्तीदार धब्बे दिखाई देते हैं।
- नियंत्रण: इस रोग की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट (30 ईसी) या मिथाइल-ओ-डेमेटोन (25 ईसी) की एक लीटर मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर, 10-15 दिनों के अंतराल पर 1-2 छिड़काव करें।
- रोगरोधी प्रजातियां जैसे पीके-262, पीके-327, पीके-416, पीके-472, पीके-1024, पीएस-564 को बोना सबसे अच्छा उपाय है।
- चितकबरा पीला धब्बा रोग: इसके लिए कन्फीडोर की 250 मि.ली. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से बुआई के 25 और 45 दिनों पर छिड़काव करें।
- पत्ती धब्बा रोग: इस रोग के लिए बाविस्टीन की 250 ग्राम दवा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
- दीमक: खेत में दीमक का प्रकोप दिखाई देने पर मोनोक्रोटोफॉस (36 ई.सी.) 750 मि.ली. या क्लोरोपायरीफॉस (20 ई.सी.) 2.5 लीटर या क्विनालफॉस (25 ई.सी.) 1.5 लीटर दवा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
- पीला मोजैक रोग:
चारा वाली फसलें (Fodder Crops)
- अगस्त का महीना चारा फसलों की अच्छी बढ़त और अगली फसल की तैयारी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।
- सिंचाई और कटाई:
- सूखे की स्थिति में सिंचाई: मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया और ग्वार जैसी चारा फसलों में यदि वर्षा नहीं हो रही है, तो हल्की सिंचाई ज़रूर करें।
- कटाई: अगेती बोई गई चारा फसलों की कटाई समय पर करते रहें।
- दो कटाई वाली किस्में: बाजरा और ज्वार की दो कटाई वाली प्रजातियों में 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। ध्यान रखें कि छिड़काव करते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी हो।
- पोषक तत्व प्रबंधन: अधिक उत्पादन देने वाली बाजरा की प्रजातियों में 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन का छिड़काव करें।
- यदि पुराने चरागाह में चारा अच्छी तरह बढ़ गया है, तो अगस्त के अंत में एक कटाई कर लें।
- घास की रोपाई करें। पिछले साल लगाए गए चरागाह में जो पौधे मर गए हैं, उनकी जगह नई घास के पौधे लगाएँ।
- यदि बहुवर्षीय घासों की रोपाई जुलाई में पूरी नहीं हो पाई थी, तो इसे जल्द से जल्द पूरा करें।
- गिनी, नेपियर और सिटेरिया जैसी बहुवर्षीय स्थापित चारा घासों की कटाई 40-45 दिनों के अंतराल पर करते रहें। इसके साथ ही, कम अंतराल पर पानी और आवश्यकतानुसार उर्वरक, सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालते रहें।
सब्जियों की खेती (Vegetable Farming):
फूलगोभी (Cauliflower)
- अगस्त का महीना फूलगोभी की मध्यम अगेती और पछेती किस्मों की नर्सरी तैयार करने के लिए सबसे अच्छा समय है।
- मध्यम अगेती किस्में: इस समय आप पूसा संकर-2, पूसा मेघना और पूसा शरद जैसी किस्मों की बुआई कर सकते हैं।
- मध्यम पछेती किस्में: पूसा पौषजा और पूसा शक्ति जैसी किस्में भी इस समय बोई जा सकती हैं।
- बुआई और बीज की मात्रा:
- इन किस्मों की बुआई के लिए बीज की मात्रा 350-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है।
- बुआई का समय जुलाई के अंत से अगस्त की शुरुआत या अगस्त के अंत से सितंबर की शुरुआत तक नर्सरी तैयार करने के लिए उपयुक्त है।
हरी मिर्च (Green Chilly)
- निराई-गुड़ाई और सिंचाई: फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें और सिंचाई की उचित व्यवस्था करें।
- जल निकास: खेतों में पानी इकट्ठा न हो, इसके लिए जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
- पोषक तत्व प्रबंधन: यदि पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं हो रही है, तो खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टर की दर से डालें।
- कीट और रोग से बचाव: पौधों को कीटों और रोगों से बचाने के लिए 0.2 प्रतिशत इंडोफिल-45 और 0.1 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव अवश्य करें।
भिंडी (Ladyfinger)
- पोषक तत्व: बुआई के 50 दिनों बाद, प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन या 87 किलोग्राम यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें।
- तुड़ाई: भिंडी की कटाई सही समय पर करें। सामान्यतः, फूल आने के 8-10 दिनों के भीतर ही भिंडी की फली की तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
- कीट नियंत्रण: फलीछेदक कीटों से बचने के लिए, मैलाथियान (50 ई.सी.) की 500-600 मि.ली. मात्रा का छिड़काव करें। ध्यान रखें कि कीटनाशी का प्रयोग करने के 7-8 दिनों तक फली की तुड़ाई न करें।
- निराई-गुड़ाई और जल निकास: भिंडी के खेतों में निराई-गुड़ाई करते रहें और जल निकास की उचित व्यवस्था करें ताकि पानी जमा न हो।
बैंगन (Brinjal)
- पोषक तत्व: रोपाई के 30 दिनों बाद, प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करें।
- कीट नियंत्रण:
- कोक्सीनेल्ला बीटल: इस कीट की रोकथाम के लिए, क्विनॉलाफास 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
- शूट और फ्रूट बोरर: इस कीट के लिए, कार्बेरिल 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करें।
- निराई-गुड़ाई और जल निकास: बैंगन के खेतों में भी निराई-गुड़ाई और जल निकास की उचित व्यवस्था बनाए रखें।
परवल (Pointed gourd)
- परवल की खेती के लिए 15 अगस्त के आसपास का समय सबसे अच्छा होता है। यहाँ परवल के रोपण की विधि और दूरी की जानकारी दी गई है।
- गड्ढा तैयार करना: रोपाई के लिए 2 x 2 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदें। गड्ढों का व्यास 50 सें.मी. और गहराई 30 सें.मी. होनी चाहिए।
- गड्ढों को भरने के लिए, आधा भाग मिट्टी, एक-चौथाई सड़ी हुई गोबर की खाद और एक-चौथाई बालू का मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण में 100 ग्राम नीम की खली और 5 ग्राम फ्यूरॉडॉन मिलाकर गड्ढों को जमीन से 15 सें.मी. ऊँचाई तक भर दें।
- यदि आप मचान बनाकर परवल लगा रहे हैं, तो रोपाई की दूरी 1.5 x 1.5 मीटर रखें।
कद्दूवर्गीय सब्जियां (Cucurbitaceous vegetables)
- टॉप ड्रेसिंग: प्रति हेक्टेयर 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन या 54 कि.ग्रा. यूरिया को दो बराबर भागों में बाँटकर, बुआई के 30 और 45 दिनों बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें।
- मचान बनाना: कद्दूवर्गीय सब्जियों में मचान बनाकर बेलों को उस पर चढ़ाने से पैदावार बढ़ती है और फल ज़मीन के संपर्क में न आने के कारण स्वस्थ रहते हैं।
- उचित जल निकास: सभी सब्जियों के खेतों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें ताकि बारिश का पानी जमा न हो, क्योंकि इससे पौधों की जड़ों को नुकसान हो सकता है।
- लौकी की बुआई: आप पूसा संकर-3 किस्म की लौकी की बुआई अगस्त महीने तक कर सकते हैं। इस किस्म में लौकी की तुड़ाई 50-55 दिनों में शुरू हो जाती है।
खीरा और अन्य सब्जियों का प्रबंधन:
- खीरा और अन्य सब्जियों में फलछेदक कीटों का प्रकोप हो सकता है, इसलिए समय पर नियंत्रण करना ज़रूरी है। यहाँ इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं।
- कीट नियंत्रण और सुरक्षा:
- फलछेदक कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए, समय-समय पर उपयुक्त दवाओं का छिड़काव करते रहें।
- दवा छिड़कने के बाद कम से कम एक सप्ताह बाद ही फल तोड़ें। यह सुरक्षा के लिए बहुत ज़रूरी है।
- सब्जियों को खाने या बेचने से पहले, उन्हें पानी से अच्छी तरह धोना सुनिश्चित करें।
- पोषक तत्व प्रबंधन: फसल में अच्छे फल लगने के लिए, आधा बोरा यूरिया का छिड़काव करें। इससे पौधों को ज़रूरी पोषण मिलेगा।
खरीफ प्याज (Kharif Onion)
- हरी प्याज की रोपाई से पहले, खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या 8 टन नाडेप कम्पोस्ट अच्छी तरह से मिला दें।
- अंतिम जुताई के बाद, प्रति हेक्टेयर 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 40 कि.ग्रा. पोटाश को खेत में अच्छी तरह से मिला दें।
अदरक और हल्दी (Ginger & Turmeric
- अदरक की फसल में, बुआई के 60-70 दिनों बाद, 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन या 54 कि.ग्रा. यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें।
- हल्दी की फसल में स्केल कीट (Scale insect), पत्र लपेटक (leaf folder) और भृंग (beetle) को नियंत्रित करने के लिए नीम के बीज का घोल (5%) या नीम से बने कीटनाशकों जैसे निम्बेसिडीन, अचूक या निमेरिन का छिड़काव करें। इसके लिए 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर इस्तेमाल करें। बुआई के 60-70 दिनों बाद, हल्दी की फसल में प्रति हैक्टर 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन या 87 कि.ग्रा. यूरिया की दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें।
फलों की खेती (Fruit Farming):
आम (Mango)
- फलों की तुड़ाई के बाद पेड़ों की देखभाल करना बहुत ज़रूरी होता है, खासकर आम के पेड़ों के लिए।
- फलों की तुड़ाई के बाद, पेड़ों की रोगग्रस्त और अवांछित शाखाओं की कटाई-छंटाई करके उन्हें जला दें।
- नए पेड़ों में प्रति वृक्ष 500 ग्राम नाइट्रोजन का उपयोग करें।
- आम के कीट:
- शल्क कीट और शाखा गांठ कीट: इनकी रोकथाम के लिए, 1.0 मि.ली. मिथाइल पैराथियॉन या 1.5 मि.ली. डाइमेथोएट प्रति लीटर पानी के घोल का 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। हर बार दवा बदल-बदल कर छिड़काव करें।
- गॉल मेकर (गांठ बनाने वाला कीट): तराई क्षेत्रों में इस कीट की रोकथाम के लिए 0.5 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस या 0.06 प्रतिशत डाइमेथोएट का छिड़काव करें।
- आम सिल्ली कीट: इस कीट की रोकथाम के लिए 5-10 अगस्त के बीच 0.04 प्रतिशत क्विनालफॉस का 10-15 दिनों के अंतराल पर 3 छिड़काव करें। कीट से प्रभावित टहनियों की नुकीली गांठों की छंटाई कर दें।
- आम के रोग: लाल रतुआ और श्याम व्रण (एंथ्रैकनोज): इन रोगों के लिए 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का छिड़काव करें।
लीची (litchi)
- लीची की फसल को स्वस्थ रखने के लिए छिलका खाने वाले पिल्लू, रेड रस्ट, सूटी मोल्ड और लीफ माइनर जैसे कीटों और रोगों से बचाव ज़रूरी है।
- कीट और रोग नियंत्रण:
- छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर):
- पहचान: ये कीट पेड़ के तने या शाखाओं में छेद करके अंदर रहते हैं और छिलके को खाते हैं।
- नियंत्रण:
- जिन छेदों में ये कीट रहते हैं, उनमें पेट्रोल, नुवान या फार्मेलीन से भीगी हुई रुई ठूंस दें।
- इसके बाद छेदों को चिकनी मिट्टी से बंद कर दें।
- इन कीटों से बचने के लिए बगीचे को हमेशा साफ-सुथरा रखें।
- रेड रस्ट (Red Rust) और सूटी मोल्ड (Sooty Mould):
- पहचान: रेड रस्ट पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे बनाता है, जबकि सूटी मोल्ड पत्तियों पर काले रंग की फफूंदी के रूप में दिखाई देता है।
- नियंत्रण: इन रोगों की रोकथाम के लिए, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 30 ग्राम प्रति लीटर या ब्लाइटॉक्स 0.3% (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर पेड़ों पर छिड़काव करें।
- लीफ माइनर (Leaf Miner):
- पहचान: यह कीट पत्तियों के अंदर सुरंग बनाकर उन्हें नुकसान पहुँचाता है।
- नियंत्रण: लीफ माइनर की रोकथाम के लिए मेटासिस्टॉक्स 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें।
- छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर):
अमरूद (Guava)
- अगस्त का महीना अमरूद के पौधों के रोपण और प्रबंधन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर मानसून के दौरान।
- पौधों का रोपण और खाद प्रबंधन:
- रोपण: इस महीने में 5×5 मीटर की दूरी पर अमरूद के पौधों का रोपण करना चाहिए।
- खाद: पौध लगाते समय, प्रति गड्ढे में 25-30 कि.ग्रा. गोबर की खाद डालें।
- उर्वरक:
- पहले साल: प्रति पौधा 260 ग्राम यूरिया, 375 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, और 500 ग्राम पोटेशियम सल्फेट डालें।
- बाद के साल: इसके बाद, पौधे की आयु के अनुसार उर्वरकों की मात्रा बढ़ाएँ।
- वर्षा ऋतु की फसल का प्रबंधन:
- गुणवत्ता: वर्षा के समय अमरूद की पैदावार ज़्यादा होती है, लेकिन फलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- फसल चक्र: अच्छी गुणवत्ता वाले फल पाने के लिए, इस मौसम में फल न लेकर शरद ऋतु में फल लेने के लिए ज़रूरी कृषि कार्य करें।
- रोग और जल प्रबंधन:
- जस्ता (जिंक) की कमी: जस्ते की कमी से पत्तियाँ पीली और छोटी हो जाती हैं, और पौधे की बढ़वार रुक जाती है।
- नियंत्रण: इस कमी को दूर करने के लिए, 2 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव करें या 300 ग्राम जिंक सल्फेट को पौधों की जड़ों में डालें।
- जल निकास: मानसून के दौरान बागानों में जल निकास का उचित प्रबंधन होना चाहिए ताकि पानी जमा न हो।
- निगरानी: बागों की लगातार निगरानी रखें और रोग या कीट के लक्षण दिखते ही तुरंत उपचार करें।
- जस्ता (जिंक) की कमी: जस्ते की कमी से पत्तियाँ पीली और छोटी हो जाती हैं, और पौधे की बढ़वार रुक जाती है।
कटहल (Jackfruit)
- कटहल के पौधों को तनाबेधक कीट से बचाने के लिए तुरंत और प्रभावी कार्रवाई की आवश्यकता होती है। यह कीट तने में छेद करके पौधे को अंदर से नुकसान पहुंचाता है।
- नियंत्रण विधि:
- पहचान और सफाई: सबसे पहले, तने पर बने हुए छेद को किसी पतले तार से अच्छी तरह साफ कर लें।
- दवा का प्रयोग: छेद के अंदर नुवाक्रॉन का घोल (10 मि.ली./लीटर) डालें।
- रुई का उपयोग: अगर नुवाक्रॉन उपलब्ध न हो, तो पेट्रोल या केरोसिन तेल की चार-पांच बूंदें रुई में डालकर छेद के अंदर डालें।
- छेद को बंद करना: छेद को तुरंत गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर दें।
- इस प्रक्रिया से वाष्पीकृत दवा या तेल की गंध से कीट मर जाते हैं। धीरे-धीरे तने में बने ये छेद खुद-ब-खुद भर जाते हैं, और पौधा सुरक्षित रहता है।
पपीता (Papaya)
- पपीता की फसल में अच्छी पैदावार और पौधों को स्वस्थ रखने के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यहाँ इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- पोषक तत्व: पौधों पर फूल आने के समय, 2 मि.ली. सूक्ष्म तत्वों को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- रोगों का नियंत्रण:
- पनामा विल्ट (Panama Wilt): इस रोग की रोकथाम के लिए, बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी के घोल से पौधों के चारों तरफ की मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करें।
- कॉलर रॉट (Collar Rot): इस रोग के कारण पौधे जमीन की सतह से ठीक ऊपर गलकर गिर जाते हैं।
- नियंत्रण: पौधशाला में पौधों को रिडोमिल (2 ग्राम/लीटर) दवा का छिड़काव करें। खेत में जल भराव न होने दें। ज़रूरत पड़ने पर खड़ी फसल में भी रिडोमिल (2 ग्राम/लीटर) के घोल से जल सिंचन (drenching) करें।
केला (Banana)
- केले की फसल के सही विकास और रोगों से बचाव के लिए अगस्त माह में इन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है:
- खाद डालना: प्रत्येक पौधे में 100 ग्राम पोटाश और 55 ग्राम यूरिया डालें। यह खाद पौधे से लगभग 50 सें.मी. दूर गोलाई में डालें।
- मिट्टी में मिलाना: खाद डालने के बाद, हल्की गुड़ाई करके इसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।
- रोग नियंत्रण:
- पनामा विल्ट (Panama Wilt): इस रोग की रोकथाम के लिए, बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी के घोल से पौधों के चारों तरफ की मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करें।
नींबू (Lemon)
- नींबू की फसल को स्वस्थ रखने और अच्छी पैदावार पाने के लिए, अगस्त के महीने में सिट्रस कैंकर जैसे रोगों और रस चूसने वाले कीटों से बचाव के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए।
- सिट्रस कैंकर रोग (Canker Disease):
- लक्षण: इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं, और धीरे-धीरे टहनियों, कांटों और फलों तक फैल जाते हैं।
- नियंत्रण:
- रोगग्रस्त हो चुकी गिरी हुई पत्तियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
- रोग से प्रभावित टहनियों को काट-छांट कर अलग कर दें।
- बोर्डो मिश्रण (5:5:50) का छिड़काव करें।
- इसके अलावा, ब्लाइटॉक्स 0.3% (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर पेड़ों पर छिड़काव करें।
- रस चूसने वाले कीट: नींबूवर्गीय फलों पर रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप को रोकने के लिए, मैलाथियॉन 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- नीली फफूंद रोग (Blue Mold):
- नियंत्रण: इस रोग को नियंत्रित करने के लिए, फलों को तुड़ाई के बाद बोरेक्स या नमक से उपचारित करें।
- रासायनिक उपचार: फलों को कार्बण्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल 0.1% के घोल से उपचारित करके भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
आंवला (Gooseberry)
- एक वर्ष के आंवला पौधे के लिए प्रति पेड़ 10 किग्रा गोबर/कम्पोस्ट खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन व 35 ग्राम पोटाश दें।
- 10 वर्ष या उससे पुराने पौधे के लिए प्रति पेड़ 100 किग्रा गोबर/कम्पोस्ट खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन व 350 ग्राम पोटाश इस माह में प्रयोग करें।
- आंवला के फलों को नीली फफूंद रोग:
- घरेलू उपचार: फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित करने से इस रोग को काफी हद तक रोका जा सकता है।
- रासायनिक उपचार: फलों को 0.1% कार्बण्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल के घोल से उपचारित करके भी रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
बेर (Berry)
- बेर में मिलीबग कीट का नियंत्रण: मिलीबग कीट की रोकथाम के लिए, मोनोक्रोटोफॉस (36 ई.सी.) की 1.5 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़ों पर छिड़काव करें।
इस महीने नींबू, बेर, केला, जामुन, पपीता, आम, अमरूद, कटहल, लीची, और आंवला के नए बाग लगाने का काम पूरा कर लेना चाहिए और अपने क्षेत्र की जलवायु व परिस्थितियों के अनुसार अच्छी किस्मों के पौधे चुनकर रोपाई करनी चाहिए। साथ ही, अगस्त महीना नींबू एवं लीची में गूटी बांधने के लिए उपयुक्त समय होता है, जिससे पौधों की संख्या बढ़ाने और स्वस्थ पौधे प्राप्त करने में मदद मिलती है।
फूल और सुगंधित पौधे (Flowers and Fragrant Plants):
- जल निकास: फूलों के खेतों में वर्षा का पानी निकालने का उचित इंतजाम करें। पानी जमा होने से पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँच सकता है।
- खरपतवार नियंत्रण: बागों में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को हटाते रहें।
- विशिष्ट पौधों का प्रबंधन:
- गुलाब: नर्सरी में लगे गुलाब के पौधों की क्यारियों की अदला-बदली करें। खेतों में जल निकास की अच्छी व्यवस्था बनाएँ। निराई-गुड़ाई करें और रेड स्केल कीट का नियंत्रण करें।
- रजनीगंधा और ग्लैडियोलस: आवश्यकतानुसार सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें। पोषक तत्वों के मिश्रण का छिड़काव करें। रजनीगंधा के फूलों के स्पाइक (Spike) की समय पर कटाई करें।
- ग्रीष्म ऋतु के फूल: जिन फूलों का मौसम पूरा हो गया है, उन्हें धीरे-धीरे निकाल दें। क्यारियों की खुदाई कर दें। मिट्टी को रोगों से मुक्त करने के लिए उपयुक्त दवाइयाँ डालें।
- शीत ऋतु के फूल: आने वाले सर्दियों के फूलों की बुआई की तैयारी शुरू कर दें।
पशुपालन/दुग्ध विकास (Animal Husbandry/Dairy Development):
- टीकाकरण और दवा:
- गलघोंटू (Hemorrhagic Septicemia) का टीका: नए आए पशुओं और बाकी बचे पशुओं में गलघोंटू का टीका ज़रूर लगवाएँ।
- लीवर फ्लूक: पशुओं को लीवर फ्लूक से बचाने के लिए समय-समय पर दवा पिलाएँ।
- पोषण और स्वच्छता:
- नवजात पशु: नवजात बच्चों को जन्म के तुरंत बाद खीस (Colostrum) ज़रूर दें। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है।
- गर्भवती पशु: गर्भवती पशुओं की उचित देखभाल करें और उन्हें पौष्टिक चारा दें।
- पशुशाला की सफाई: पशुशाला को साफ-सुथरा और सूखा रखें। ध्यान दें कि कहीं भी पानी जमा न हो, क्योंकि यह बीमारियों का कारण बन सकता है।
- कीटों और परजीवियों से बचाव:
- मच्छर: मच्छरों से बचाव के लिए पशुशाला के पास नीम की पत्ती का धुआँ करें।
- बाहरी परजीवी: पशुओं को बाहरी परजीवियों (जैसे किलनी और जूँ) से बचाने के लिए बाह्य परजीवीनाशक दवा लगाएँ।
मुर्गी पालन (Poultry Farming):
- पेट के कीड़ों की दवा (डिवर्मिंग): मुर्गियों के पेट में कीड़ों को मारने के लिए डिवर्मिंग की दवा ज़रूर दें। यह उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।
- स्वच्छता: मुर्गियों के बाड़े (मुर्गीखाना) को हमेशा सूखा रखें। बिछावन में नमी न जमने दें और उसे नियमित रूप से पलटते रहें। अगर नमी ज़्यादा हो, तो पंखा चलाकर उसे सुखाने की कोशिश करें।
- पानी का क्लोरीनेशन: मुर्गियों को पीने के लिए हमेशा साफ पानी दें। उनके पानी का क्लोरीनेशन ज़रूर करें ताकि पानी में मौजूद हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाएँ।